सोमवार, 4 नवंबर 2019

छत्तीसगढ़ी फिल्म बिरादरी को चाहिए प्रदेश भर में थियेटर

मेरी राय - अरुण बंछोर
छत्तीसगढ़ी फिल्मों पर आधारित हमारी पत्रिका का मकसद छॉलीवुड के लोगों को सूचीबद्ध करने का प्रयास नहीं है, बल्कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों के 54 वर्षों के सफर की कुछ प्रसंगों का उल्लेख मात्र है। मध्यप्रदेश से जब छत्तीसगढ़ अलग हुआ तब यहां के सभी विभागों की संरचना मध्यप्रदेश की जैसी ही रही। मध्यप्रदेश में फिल्म विकास निगम है, पर छत्तीसगढ़ में 18 वर्षों बाद फिल्म विकास निगम की स्थापना तो हुई लेकिन अभी भी मृतप्राय की स्थिति में है। छत्तीसगढ़ी फिल्म बिरादरी को फिल्म विकास निगम के साथ साथ प्रदेश भर में थियेटर चाहिए,  फिल्म सिटी अभी नहीं बने तो भी चलेगा, लेकिन थियेटर जरूर बने. सभी बड़े निर्माता निर्देशक और कलाकारों का यही कहना है. दूसरा छत्तीसगढ़ी फिल्मों को टेक्स फ्री कर दिया जाए.छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बनने के कुछ दिनों बाद ही अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ी फिल्मों को टैक्स फ्री कर दिया था। हालांकि इसका ज्यादा फायदा नहीं मिला छत्तीसगढ़ी फिल्मों को, क्योंकि कुछ दिनों बाद ही 50 रुपए तक के टिकट पर सभी फिल्मों को टैक्स फ्री कर दिया गया। परेश बागबाहरा की अध्यक्षता में फिल्म विकास समिति का गठन किया गया था। दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में छत्तीसगढ़ी फिल्म फेस्टिवल और वर्ष 2002 में छत्तीसगढ़ी फिल्म सम्मान समारोह के अलावा कोई और महत्वपूर्ण कार्य इस समिति के खाते में नहीं है। यह अब अस्तित्व में नहीं है। तब से अब तक छत्तीसगढ़ी फिल्मों को लेकर सरकार से कुछ सकारात्मक पहल का इंतजार है। छत्तीसगढ़ी फिल्म बिरादरी के सभी लोगों की एक स्वर में मांग है थियेटर की, ताकि फिल्मों के  समस्या ना हो। फिल्म विकास निगम बना देने मात्र से छत्तीसगढ़ी फिल्मों का विकास हो, ये जरूरी नहीं है। शासन-प्रशासन को और पूरे छॉलीवुड को सकारात्मक सोच के साथ प्रयास करने होंगे, एक-दूसरे को सहयोग करना होगा। तभी एक बेहतर वातावरण छत्तीसगढ़ी फिल्मों के पक्ष में बन पाएगा। फिल्मों को अनुदान की व्यवस्था हो या फिल्म फेस्टिवल के आयोजन का। विश्व सिनेमा तक पहुंच बनाने का एक अच्छा माध्यम बन सकता है फिल्म फेस्टिवल। छत्तीसगढ़ी फिल्मों को अभी तक कोई अनुदान का प्रावधान नहीं है, जैसा कि देश के बहुत से राज्यों में है। एक निश्चित राशि सब्सिडी के रूप में फिल्म निर्माता को प्राप्त होने पर वह लगातार बेहतर फिल्म निर्माण के लिए प्रेरित होगा। बहुआयामी कला केंद्र के लिए सरकार की प्रतिबद्धता तो दिखाई देती है, लेकिन अभी तक कुछ भी सही गति के साथ मूर्त रूप लेता नजर नहीं आ रहा है। नई राजधानी में फिल्म सिटी प्रस्तावित है, लेकिन अभी तक वो भी कागजों से बाहर नहीं निकल पा रही है। छत्तीसगढ़ का प्राकृतिक सौन्दर्य उसकी पहचान है। अगर सकारात्मक प्रयास किए जाएं तो बाहर से भी फिल्म निर्माता यहां आकर फिल्मों की शूटिंग कर सकते हैं। वैसे कुछ भोजपुरी और हिंदी फिल्मों की शूटिंग अब छत्तीसगढ़ में होने लगी है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें