शनिवार, 26 दिसंबर 2015

एंकरिंग से नायिका बनी मंदिरा

शाहरुख के साथ काम कर सके , उस लायक बनने की है तमन्ना
छालीवुड में एंकरिंग से फिल्मो में कदम रखने वाली नायिका मंदिरा नायक की तमन्ना शाहरुख के साथ काम करने लायक बनने की है। साथ ही वे फिटनेस के लिए लोगो को जागरूक करना चाहती है। मंदिरा छालीवुड में सभी प्रकार की भूमिका निभाना चाहती है ताकि उन्हें कटु अनुभव हो जाए। वे कहती है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो में गुणवत्ता हो तो जरूर थियेटरों में चलेगी। मंदिरा दैनिक सन स्टार के दफ्तर आई तो हमने उनसे हर पहलुओं पर बात की।
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। स्कूल में नाटकों में भाग लिया करती थी फिर नाटकों में किया। जब जब टीवी देखता था तब तब मुझे लगता था कि मुझे भी कुछ बनना चाहिए ।
0 छालीवुड की क्या सम्भावनाये है?
00 बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए । थियेटरों  की कमी को सरकार पूरा करे।
0 तो छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है?
00 क्योकि यहां की फिल्मो में बहुत सारी कमियां होती है। फिल्मो में वो गुणवत्ता नहीं होती जो यहां के लोगो को चाहिए। प्रोड्यूसरों को इस और ध्यान देने की जरुरत है।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। नाटकों में भाग लेने के बाद लोगो ने मेरा अभिनय देखा और फिल्मो में मौका दिया। माँ कुंती नायक ही मेरे प्रेरणाश्रोत है जो हर पल मेरे साथ होती है।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चली हूँ। अब इसी लाईन पर काम करती  रहूंगी।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।
00  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगी  , लेकिन निगेटिव रोल पसंद है।
0 सरकार से आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
00 सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।
0 आप इतने फिट कैसे हो पाई। राज क्या है?
00 मैंने हेल्थ को लेकर बहुत मेहनत की है। अपना काफी वजन कम किया है। अब फिटनेस के लिए लोगो को अभियान चलाकर जागरूक करूंगी। 
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
00 छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहती हूँ। शाहरुख खान के साथ काम करने की तमन्ना है। इस लायक बन सकूँ यही मेरी इच्छा है।

गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

गॉडफादर जैसे रोल का मुझे इन्तजार है

मैं बार बार टूटता हूँ और सम्हालता हूँ: पुष्पेन्द्र सिंह 
छत्तीसगढ़ के जाने माने स्टार पुष्पेन्द्र सिंह में खूबियों का खजाना है। वे एक अच्छे कलाकार है तो उतने ही
अच्छे निर्माता निर्देशक और लेखक भी हैं। उन्हें अपने काम के प्रति जूनून है। उनका कहना है कि - कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती , लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती। उनका सपना गॉडफादर जैसे रोल करने की है, जो किसी के जीवन पर आधारित हो। पुष्पेन्द्र सिंह मुम्बई में भी अपनी कला का लोहा मनवा रहे हैं। उन्होंने सीरियलों में 100 से ज्यादा एपिशोड कर चुके हैं। उनसे हमने हर पहलूओं पर बेबाक बात की है।
० छत्तीसगढ़ी फिल्मो की क्या संभावनाएं हैं?
०० जब तक टेक्नीकल क्षेत्र में एक्सपर्ट लोग नहीं होंगे तब तक ऐसी ही कमजोर फिल्मे बनती रहेंगी। यहां जिसे जो नहीं आता वही करते हैं । गायक निर्देशक बन जाता है। कोई भी फाइट मास्टर बन जाता है। कोई प्लानिंग नहीं होती जो पैसा नहीं लेते वही कलाकार यहाँ चलते है। तो आप अंदाज लगा ले कैसी फिल्मे बनेंगी। ० छत्तीसगढ़ी सिनेमा अच्छा व्यवसाय करे इसके लिए क्या कर सकते हैं?
०० यहां फिल्मे कमजोर बन रही है । फिल्मे नहीं चल पाती इसकी वजह भी हैं और वो सब जानते हैं कि पिछड़े हुए राज्य में टॉकीजों का विकास नहीं होना। छत्तीसगढ़ में मिनी सिनेमाघर दो सौ दर्शकों की क्षमता वाली टॉकिजों की बड़ी आवश्यकता है जहां छत्तीगसढ़ी फिल्मों के दर्शक आसानी से पहुंच सके। प्रचार प्रसार की कमी है। सिर्फ रायपुर में प्रचार के लिए पांच लाख चाहिए जो निर्माता नहीं करते।
० आप इस क्षेत्र में कैसे आये ?
०० मै थियेटर से आया हूँ। सलमा सुलतान की धारावाहिक सुनो कहानी में मुझे मौका मिला फिर मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मैंने भारतभूषण के साथ काम किया है।
० फिल्मो की और रुझान कैसे हुआ?
०० मेरी कला मेरे पिताजी की देंन है। कृष्ण बनाकर मुझे खड़ा कर दिए थे वही  प्रेरणाश्रोत है। आगे बढ़ने में मेरी पत्नी का भी बहुत सहयोग है। जिसके कारण मैं कलाकार हूँ ।
० आपने बहुत सी फिल्मे कर ली आपकी राह कैसे आसान हुआ?
०० मै बार बार टूटता हूँ ,बार बार सम्हालता हूँ । मुझे ढर्रे पर जीना नहीं आता। यहां आलोचना करने वाले तो बहुत मिल जाएंगे पर साथ देने वाले नहीं। कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होप्ती , लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती। बस मै यही जानता हूँ।
० छत्तीसगढ़ी फिल्मो के प्रदर्शन में कमी कहाँ होती है?
०० प्रचार प्रसार और विज्ञापन में कमी फिल्म नहीं चलने का सबसे बड़ा कारण है। थियेटर भी एक कारण हो सकता है। गाँव गाँव तक हम अपनी फिल्म नहीं पंहुचा पा रहे हैं। बेहतर प्रचार पसार हो और प्रदेश के सभी टाकीजों में फिल्म लग जाए तो लागत एक हप्ते में निकल आएगी। सरकार मदद नहीं करती और डिस्ट्रीब्यूशन भी सही नहीं है।
० क्या छत्तीसगढ़ में नायिकाओं की कमी है कि बाहर से लाना पड़ता है?
०० हाँ जरूर है। लडकिया बहुत है पर अच्छे घरों की लडकियां इस फिल्ड में आना नहीं चाहती क्योकि उन्हें वो सम्मान नहीं मिलता जो वो चाहतीं हैं। इसलिए कमी बनी हुई है।
० आपकी भविष्य की क्या योजना है?
०० मै साल में दो ही काम करूंगा पर अच्छा करूंगा। मैंने अपना ग्रुप तैयार किया है एसपी इंटरटेनमेंट के बैनर पर हमने काम शुरू किया है। इस क्षेत्र में काम करते रहेंगे।
० आपने सभी प्रकार की भूमिका का निर्वहन किया है वैसे आपको कैसा रोल पसंद है?
०० मुझे आज तक पसंद का रोल नहीं मिला। साइलेंट करेक्टर चाहिए ,पता नहीं कभी मिल पायेगा या नही।
० रील और रियल लाइफ में क्या अंतर पाते है?
०० बहुत अंतर है। रियाल लाइफ की घटना को रील लाइफ में ला सकते हैं पर रील को रियल में नहीं ला सकते।
० ऐसा कोई सपना जिसे आप पूरा होते हुए देखना चाहते हैं?
०० गॉडफादर जैसे रोल करने की तमन्ना है, जो किसी के जीवन पर आधारित हो। जैसे महात्मा गांधी। 

बुधवार, 23 दिसंबर 2015

छत्तीसगढ़ी फिल्मे एक नज़र में

रंगीन फिल्मों में 
((1) कही देबे सन्देश (2) घर द्वार (3) मोर छइयां भुइयां (4) मया देदे, मया ले ले (5) मयारू भौजी (6) अंगना (7) छत्तीसगढ़ महतारी (8) कारी (9) तुलसी चौरा (10) झन भुलव मां बाप ला (11) मया (12) टूरा रिक्शावाला (13) लैला टिपटॉप, छैला अंगूठा छाप (14) भांवर (15) मया देदे मयारू (16) परदेशी के मया (17) मया (18) अब्बड़ मया करथंव (19) माटी के लाल (20) बैरी के मया (21) बिदाई (22) जय महामाया (23) बंधना (24) भकला (25) तीजा के लुगरा (26) गजब दिन भइगे (27) मिस्टर टेटकूराम (28) महूं दीवाना, तहूं दीवानी (29) हीरो न. 1 (30) टूरी न. 1 (31) लेडग़ा नं. 1 (32) छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा (33) मितान 420 (34) गुरांवट (35) अब मोर पारी हे (36) ऐ मोर बांटा (37) बैर (38) भुइयां के भगवान (39) घर द्वार (नई) (40) तरी हरी ना ना (41) दिल तोर दीवाना हे (42) कंगला होगिस मालामाल (43) किसान-मितान (44) संगवारी (45) मया के बरखा (46) मोंगरा (47) मोर धरती मईया (48) मोर गांव (49) मोर संग चलव (50) मोर गंवई गांव (51) मोर संग चल मितवा (52) मोर सपना के राजा (53) नैना (54) परशुराम (55) प्रीत के जंग (56) रघुबीर (57) तोर आंचल के छइयां तले (58) तोर मयां के मारे (59) तोर मया म जादू हे (60) तोर संग जीना संगी, तोर संग मरना (61) मोहनी (62) सजना मोर (63) किस्मत के खेल (64) मोर करम मोर धरम (65) अजब जिनगी गजब जिनगी (66) भोला अऊ शंकर (67) पहुना (68) मया के डोरी (69) बईरी सजन (70) दुल्हिन बना के ले जा (71) मोर दुलरवा (72) टूरा अनाड़ी तभो खिलाड़ी (73) जरत हे जिया मोर (74) गुरु बाबा घासीदास (75) गौना (76) डांड (77) पठौनी के चक्कर (78) गुहार रामराज के (79) अनाड़ी संगवारी (80) मया के बंधना (81) सीता (82) मया हो गे रे । 83 राजा छत्तीसगढिय़ा 84 . माटी मोर मितान , 85 महतारी के बँटवारा  86 .एक अउ अर्जुन 87 . सिधवा सजन , 88 तोर खातिर , 89 .राम बनाही जोड़ी 90 छलिया, 91 असली संगवारी (९२) जय बम्लेश्वरी मइया (९३) भोला छत्तीसगढिय़ा (९४) सरपंच (95 ) दू लफाड़ू (96) गदर मताही (९७) कका (98 ) मोहि डारे रे (99) गोलमाल (100) परेम के जीत (101) सलाम छत्तीसगढ़ (102 ) महतारी(103 ) मया के धरांैदा (104 ) तोला ले जाहू उढ़रिया (105 ) सोन चिरैय्या (106 ) ढाई

डब फि़ल्में 
95 लोरिक चंदा, 96 मन के बंधना,97 मया मा फूल मया मा कांटे, 98 माटी मोर म?हतारी,99 पुन्?नी के चंदा, 100 सीता, 101 संग म जीबो संग म मरबो, 102 मोर सैंया 10३ अनाड़ी संगवारी, १०४चंदन बाबू, १०५ हर हर महादेव, १०६ लेडग़ा ममा

अप्रदर्शित फिल्मों में
प्रदर्शित फिल्मों की सूची के साथ ही निर्माणाधीन अप्रदर्शित फिल्मों में (1) दू लफाड़ू (2) गदर मताही (3) कका (4) मोहि डारे रे (5) गोलमाल (6) परेम के जीत (7) सलाम छत्तीसगढ़ (8) जागो रे (9) संगी रे (10) महतारी (11) धुरंधर (12) किरिया (13)  बेर्रा (14) मया के धरांैदा (15) नचकारिन (16) छैला (17) ढाई (18) मेहंदी तोर नाम की (19) तोला ले जाहू उढ़रिया (20) सोन चिरैय्या (21) मया के मंदिर (22) मया के सौगंध (23) फुलकुंवर (24) नागिन के मया (25)अंजोर  (26) कोयला  ,(27 ) धरती पुत्र   (28)चक्कर गुरूजी के ,  (29) दबंग देहाती 

लोग मुझे बेस्ट खलनायक के रूप में ही पहचाने : अरविन्द

छत्तीसगढ़ी फिल्मो को प्राइमरी स्कूल के सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए
छत्तीसगढ़ी फिल्मो के चर्चित नाम है अरविन्द गुप्ता,जिन्होंने 25 से अधिक फिल्मो में अपने अभिनय से
निर्माता निर्देशकों का दिल जीत लिया है। उनका कहना है कि लोग मुझे बेस्ट खलनायक के रूप में ही पहचाने। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को प्राइमरी स्कूल के सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए। अरविन्द कहतें हैं कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो का भविष्य काफी
अच्छा है। दबंग देहाती में शानदार भूमिका निभाने वाले अरविन्द कहते हैं कि सरकार को भी छालीवुड की ओर ध्यान देना चाहिए जिससे कलाकारों का भला हो सके।दैनिक सन स्टार ने उनसे हर पहलुओं पर बात की।
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। स्कूल में नाटकों में भाग लिया करता था फिर थियेटर ज्वाइन किया। जब जब टीवी देखता था तब तब मुझे लगता था कि मुझे भी कुछ बनना चाहिए ।
0 छालीवुड की क्या सम्भावनाये है?
00 बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ऑर है।
0 तो छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है?
00 क्योकि यहां की फिल्मो में बहुत सारी कमियां दिखती है। दूसरी और लोगो को छत्तीसगढ़ी फिल्मो के बारे में बताया जाना चाहिए। प्राइमरी स्कूल के सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। मैंने कई फिल्मे कर ली है। थियेटर करने के बाद लोगो ने मेरा अभिनय देखा और फिल्मो में मौका दिया।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चला था। अब इसी लाईन पर काम करता रहूंगा। लगातार काम करूंगा।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।
00  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगा , लेकिन निगेटिव रोल पसंद है।
0 सरकार से आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
00 सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।
0 रिल और रियल लाइफ में क्या अंतर है?
00 रिल और रियल लाइफ में बहुत अंतर है। रील लाइफ निर्देशक के अनुसार होता है और रियल लाइफ अपने हिसाब से होती है।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
00 छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहता हूँ। अब लगातार फिल्मो में ही काम करते रहने की तमन्ना है। मै चाहता हूँ कि लोग मुझे बेस्ट खलनायक के रूप में जानें। 

रविवार, 20 दिसंबर 2015

कलेक्टर बनना चाहता है बाल कलाकार रज़ा खान

फिल्मो में काम करते रहेंगे 

छत्तीसगढ़ी फिल्मो में अपने अभिनय का जादू बिखरने वाले बाल कलाकार रजा खान की दिली इच्छा आईएएस की परीक्षा पास कर कलेक्टर बनने की है। अगर ऐसा होता है तो भी वे फिल्मो में काम करते रहेंगे। फिल्म दबंग देहाती में बड़े कलाकारों के साथ काम करके रज़ा खान बेहद खुश है। छालीवुड के सुपर स्टार करन खान भी उनके अभिनय के कायल हैं। रज़ा से दैनिक सन स्टार ने बेबाक बात की है।
0 फिल्म दबंग देहाती में आपका क्या रोल है और कैसे कर पाएं है?
00 ये मेरी दूसरी फिल्म है मुझे इस फिल्म में अच्छा रोल दिया गया है। इसमें मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है। एक तो बड़े बड़े कलाकारो के साथ काम करने का मौका मिला है। इसका अपना अलग ही मजा है। करन खान के बारे में जितना सूना था उससे ज्यादा अच्छा है। बस अभी तो सीख रहा हूँ।
0 इसके पहले भी आपने करण खान के ही फिल्म में काम किया है?
00 हाँ फिल्म सिधवा सजन में मैंने उनके बचपन का किरदार निभाया है। उनके साथ काम करके मुझे बहुत ही अच्छा महसूस होता है।
0  पहली बार कैमरे के सामने आने से डर नहीं लगा?
00 नहीं इसके पहले हमेशा स्कूल के कार्यक्रमों में भाग लेता रहा हूँ।
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। आईना के सामने खड़े होकर एक्टिंग किया करता था तब मेरे पिता मोहम्मद निजाम खान को लगा कि मै एक अच्छा कलाकार बन सकता हूँ ।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। मेरे पिताजी ही मेरे प्रेरणाश्रोत है । करन खान ने मुझे मेरा काम देखा और मौका दिया है।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 नहीं ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की नहीं सोचा है और ना ही अब मेरा यह उद्देश्य है। पर इस लाईन पर काम करटा रहूँगा।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।
00  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगा ताकि मुझे सभी प्रकार का अनुभव हो। छोटे बड़े सभी रोल मुझे पसंद है।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहते हैं?
00 मेरी दिली इच्छा आईएएस की परीक्षा पास कर कलेक्टर बनने की है। फिर साथ साथ छालीवुड में भी कुछ करके दिखाना चाहता हूँ। अपनी मेहनत से एक अच्छा कलाकार कहलाना पसंद करूंगा। 

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

छत्तीसगढ़ में बनेगी हिन्दी फिल्म 'तेरी मेरी कहानी द रिवेंज

छत्तीसगढ़ के निर्माता निर्देशकों का रुझान भी अब छत्तीसगढ़ी फिल्मो के साथ साथ हिन्दी फिल्मो की ओर बढ़
रहा है। कारण जो भी हो लेकिन यही माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मे टाकीजों में टिक नहीं पाती और ना
ही लागत निकाल पाती है। इसलिए निर्माता अब हिन्दी फिल्मो में हाथ आजमाना चाहते है। अम्बिकापुर के युवा प्रोड्यूसर अलख मिश्रा छत्तीसगढ़ की धरती पर हिन्दी फिल्म तेरी मेरी कहानी बनाने जा रहे हैं। यह फिल्म पूरी तरह से लव स्टोरी पर ही आधारित होगी। इसकी शूटिंग भी छत्तीसगढ़ में ही करने की योजना है।
निर्माता अलख मिश्रा का कहना है कि यहां छत्तीसगढ़ी फिल्मे तो बहुत बन रही है इसलिए वे हिन्दी फिल्मो में किस्मत आजमाने जा रहे है। उन्हें पूरी उम्मीद है कि तेरी मेरी कहानी एक अच्छी फिल्म साबित होगी। उनका कहना है कि वे छत्तीसगढ़ को ही अपनी फिल्म में दिखाना चाहते हैं। यह कहानी प्यार, पैसा,धोखा और बदले की कहानी है। यह फि़ल्म आज के वर्तमान समाजिक परिवेश को दर्शाती है कि आज की युवा पीढ़ी किस तरह प्यार पैसा और अपनी जरूरतों के लिए किस हद तक जा सकते हैं साथ ही इस फि़ल्म में यह भी बताया गया ही कि अगर सच्चे प्यार के साथ कोई बेवफाई करे तो सच्चा प्यार किस हद तक जा कर अपने साथ हुई बेवफाई का बदला ले सकता है।

तोर मोर यारी टूटी

छत्तीसगढ़ी फिल्म तोर मोर यारी बड़े ही धूमधाम से शुरू हुई थी लेकिन बीच रास्ते में  अटक गयी। खबरों के अनुसार अब यह फिल्म पूरी नहीं होगी। फिल्म की आधी शूटिंग ही हो पाई थी , की फिल्म का निर्माण रोकना पड़ा। बताया जा रहा है कि पैसो के अभाव में निर्माता ने फिल्म आगे शूट न करने का फैसला कर लिया है। इसका कारण बताया जा रहा है निर्माता के घर चोरी हो जाना, अब इसमें सच्चाई कितनी है यह तो वही जाने ,पर इतना जरूर है कि अब यह फिल्म आगे शूट नहीं होगी।

हिरोईन नहीं मिल रही। 
अब आप कहेंगे कि छत्तीसगढ़ में हीरोइनों की कमी नहीं है पर यह भी सच है कि कई फिल्म निर्माताओं को हिरोईन नहीं मिल रही है। बिलासपुर के एक निर्माता ने मुझे बताया कि़ वे फिल्म मोगरा बनाने जा रहे है उन्हें इसके लिए हिरोईन की तलाश है। काफी हाथ पैर मार लिया है उन्हें अब तक हिरोईन नहीं मिल पाया है।

हिन्दी फिल्मों के लिए आडिशन 
यहां इन दिनों छत्तीसगढ़ी फिल्मे थोक के भाव में बन रही है। इस बीच हिन्दी फिल्मो के लिए भी यहां दो दो स्थानों पर आडिशन हो रहा है। यह छत्तीसगढ़ के लिए एक अच्छा संकेत है। एक फिल्म के लिये आडिशन एजाज वारसी के निवास पर तो दूसरा इरा फिल्म में चल रहा है। छत्तीसगढ़ के कलाकार हिन्दी फिल्मो के लिए आडिशन दे रहे हैं।

बेर्रा से कई सीन हटाये गए 
छत्तीसगढ़ी फिल्म बेर्रा की शूटिंग पूरी हो गयी है। डबिंग के दौरान इस फिल्म से कई सीन हटा दिए गए। सुनने में आया है कि दृश्य को कम करने के लिए वो सीन हटाये गए है। ये भी कहा जा रहा है कि शूटिंग ठीक नहीं हो पाया था। कारण जो भी हो फिल्म के सीन में कैची तो चल गयी है। सबसे ज्यादा सीन सुनीता के काटे गए हैं।

फिल्म बनाने की होड़ 
कहते हैं कि छत्तीसगढ़ी फिल्मे अपनी लागत नहीं निकाल पाती, यह सिर्फ कहावत है या कुछ और ये कहना मुश्किल है क्योकि यहां छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाने की होड़ मची हुई है। बिलासपुर में फिल्म मोगरा की 23 को मुहूर्त है वही धमतरी में 22 से फिल्म बही तोर सुरता मा की शूटिंग शुरू हो रही है। इस फिल्म को भिलाई के धर्मेन्द्र चौबे निर्देशित करेंगे।

37 फिल्मों को प्रदर्शन का इंतजार 
छत्तीसगढ़ी फिल्मे धड़ाधड़ बन तो रही है पर कई फिल्मो को अब भी प्रदर्शित होने का इन्तजार है जिसमे कई फिल्मे काफी वर्ष पहले से बनकर पडी हुई है। फिल्म रिलीज ना हो पाने का कारन क्या है ये तो हम नहीं कह सकते पर इतना जरूर कहेंगे कि फिल्म बनी है तो रिलीज भी होनी चाहिए। सुनने में आ रहा कि मया के मंदिर का जल्द ही रिलीज होने का सौभाग्य मिलेगा।  

छत्तीसगढ़ी फिल्मो का भविष्य अच्छा है : महबूब

पात्र के अनुसार कलाकारों का चयन हो
छत्तीसगढ़ी फिल्मो के उभरते कलाकार महबूब खान का कहना है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो का भविष्य काफी
अच्छा है। दबंग देहाती में हवलदार की भूमिका निभाने वाले महबूब कहते हैं कि सरकार को भी छालीवुड की ओर ध्यान देना चाहिए जिससे कलाकारों का भला हो सके। महबूब अब लगातार फिल्मे ही करते रहना चाहते हैं। दैनिक सन स्टार ने उनसे हर पहलुओं पर बात की।
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। जब जब टीवी देखता था तब तब मुझे लगता था कि मुझे भी कुछ बनना चाहिए । मैंने कोशिश की और आज कुछ हद तक सफल हूँ।
0 छालीवुड की क्या सम्भावनाये दिखती है?
00 बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ऑर है।
0 तो छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है?
00 क्योकि यहां की फिल्मो में बहुत सारी कमियां दिखती है। कलाकारों का चयन भी संबंधों के आधार पर होता है। निर्माता सबसे पहले फाइनेंसर की तलाश में होता है। जो पैसा लगाता है वो कलाकार बन जाता है।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। मेरी पहली फिल्म दबंग देहाती है। मुझे करन खान ने पहचान दी है और वही मेरे आदर्श हैं।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चला था। अब इसी लाईन पर काम करता रहूंगा। लगातार काम करूंगा।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।
00  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगा ताकि मुझे सभी प्रकार का अनुभव हो।
0 सरकार से आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
00 सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।
0 रिल और रियल लाइफ में क्या अंतर है?
00 रिल और रियल लाइफ में बहुत अंतर है। रील लाइफ निर्देशक के अनुसार होता है और रियल लाइफ अपने हिसाब से होती है।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
00 छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहता हूँ। अब लगातार फिल्मो में ही काम करते रहने की तमन्ना है। मुझे जो भी रोल मिलेगा ईमानदारी से करने की कोशिश करूंगा। 

मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

छत्तीसगढ़ में फिल्मे ठीक नहीं बन रही है - मनोज वर्मा

मौलिक कहानियों पर बने छत्तीसगढ़ी फिल्में
छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माता ,निर्देशक मनोज वर्मा का कहना है कि छत्तीसगढ़ में फिल्मे ठीक नहीं बन रही है। फिल्मे मौलिक कहानियों पर बनाना चाहिए तभी दर्शकों को पसंद आएगी। उन्होंने कहा कि डीजीटल तकनीक से फिल्म निर्माण और सफलतापूर्वक प्रदर्शन कर इस माध्यम से छालीवुड ने ही अन्य क्षेत्रों को दिया। उनकी पहली फिल्म बैर जो एचडीवी फार्मेट में बनी थी पहली बार पूरे परदे पर दिखाई गई। छालीवुड की फिल्में बहुत समय में पूरा ध्यान देकर बनती है लेकिन इसमें और सुधार की गुंजाइश से इंकार नहीं किया जा सकता।  बैर , महू दीवाना तहु दीवानी , मिस्टर टेटकूराम , दू लफाड़ू  जैसे सफल फिल्मो के निर्देशक  मनोज वर्मा संजीव बक्शी के उपन्यास भूलन कांदा  पर फिल्म बनाने जा रहे है। कहानी लिखने में तीन साल लग गए।
दैनिक सन स्टार ने उनसे हर पहलुओं पर विस्तार से बात की है।

० छत्तीसगढ़ी फिल्मो की क्या संभावनाएं हैं?
०० जबरदस्त है। जरुरत है सीखकर काम करने की। वे कहते है छत्तीसगढ़ी सिनेमा को चार-पांच लोग अपने कंधों पर जवाबदेही के साथ आगे बढ़ा रहे इसमें और ज्यादा लोग जुडऩे की जरूरत है खासतौर पढ़े-लिखे नवयुवक।
० छत्तीसगढ़ी सिनेमा अच्छा व्यवसाय करे इसके लिए क्या कर सकते हैं?
०० यहां फिल्मे  बन रही है । फिल्मे नहीं चल पाती इसकी वजह भी हैं और वो सब जानते हैं कि पिछड़े हुए राज्य में टॉकीजों का विकास नहीं होना। छत्तीसगढ़ में मिनी सिनेमाघर दो सौ दर्शकों की क्षमता वाली टॉकिजों की बड़ी आवश्यकता है जहां छत्तीगसढ़ी फिल्मों के दर्शक आसानी से पहुंच सके।
० आप इस क्षेत्र में कैसे आये ?
०० मेरी रूचि तो गायन में ही था और रहेगा। शौकिया तौर पर स्टूडियो खोला था , अब यही मेरा प्रोफेशन बन गया। मैने अब तक बैर, महू दीवाना तहूं दीवानी, मिस्टर टेटकूराम, छत्तीसगढ़ी फिल्म का निर्देशन किया है।
० जो नए लोग छालीवुड में आ रहे हैं उनके लिए क्या जरूरी है?
०० छत्तीसगढ़ी फिल्में ट्रायल एंड ऐरर पर चल रही है। जो नए लोग आ रहे हैं उन्हें फिल्म मेकिंग के संदर्भ में तकनीकी पहलुओं का भी ज्ञान होना चाहिए। इसके लिए फिल्म प्रशिक्षण संस्थान की आावश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता। इसका आशय यह भी है कि नए लोग निरूत्साहित हो जाए वे भी हाथ आजमाएं। और एक वजह यह भी जिसके चलते लगातार छत्तीगसढ़ी फिल्मे बन रही है। इस इंडस्ट्रीज का फ्यूचर ब्राइट है और आपार संभावनाएं हैं
०  छत्तीसगढ़ी फिल्मो में छत्तीसगढ़ी परिवेश वेशभूषा क्यों नहीं दिखाई देती?
०० वर्तमान परिवेश में जो है उसी के आधार पर वेशभूषा का उपयोग हो रहा है वो सही है। आजकल गाँव की लडकिया भी सलवार शूट में होती है ,तो साड़ी में दिखाना ठीक नहीं। फिल्मो  संस्कृति होती है और संस्कृति से फिल्मे बन रही है।
० छत्तीसगढ़ी फिल्मो के प्रदर्शन में कमी कहाँ होती है?
०० प्रचार प्रसार और विज्ञापन में कमी फिल्म नहीं चलने का सबसे बड़ा कारण है। थियेटर भी एक कारण हो सकता है। गाँव गाँव तक हम अपनी फिल्म नहीं पंहुचा पा रहे हैं। बेहतर प्रचार पसार हो और प्रदेश के सभी टाकीजों में फिल्म लग जाए तो लागत एक हप्ते में निकल आएगी।
० क्या छत्तीसगढ़ में नायिकाओं की कमी है कि बाहर से लाना पड़ता है?
०० हाँ जरूर है। जो क्लास नायिकाओं में होनी चाहिए यहां नहीं मिलती। जो अच्छी है वो यहां की बजाये मुम्बई में काम करना पसंद करती है।
० सरकार से छालीवुड को क्या मदद चाहिए?
०० 24 घंटे का एक ऐसा दूरदर्शन चैनल चाहिए जो सिर्फ छत्तीसगढ़ी भाषा पर ही हो। ताकि गांवों में रहने वाले भी देख सके। फिल्म सिटी और फिल्म विकास निगम बने। ताकि फिल्म निर्माण के लिए सभी सुविधाएं एक ही जगह पर मिल जाए।

शनिवार, 12 दिसंबर 2015

छत्तीसगढ़ी सिनेमा कभी समाप्त नहीं होगा-मनु

छत्तीसगढ़ी फिल्म बिजनेस कभी समाप्त नहीं होगा। वर्तमान में जो सिनेमा बन रहा है उसमें कुछ लोग अच्छा कर रहे हैं तो कुछ नौसिखिए ग्लैमर की चकाचौंध के आकर्षण में फंस फिल्मों से जुड़ गए है। इसी गड़बड़ से दर्शकों को निराशा होती है। व्यावहारिक रूप से फिल्म मेकिंग जानने के बाद ही निर्माण हो तो अच्छा होगा। यह विचार है छत्तीसगढ़ी फिल्मों के जनक
और पितामह मनु नायक का जिन्होंने पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म ''कहि देबे संदेशÓÓ का निर्माण-निर्देशन कर छालीवुड का आगाज किया। भोजपुरी फिल्म गंगा मैय्या तोहे पियरी चढ़इबो से प्रेरित होकर सन् 1963 में श्री नायक ने छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माण की घोषणा अमर गायक मो. रफी की आवाज में गाना रिकार्डिंग कर की। गीत लिखा डॉ. हनुमंत नायडू ने जिन्होंने छत्तीसगढ़ी गीतों पर डाक्टरेट किया था और संगीत दिया मलय चक्रवती ने। तब तक फिल्म का नाम तय नहीं हुआ था, इसके पश्चात छत्तीसगढ़ी गीतों में संदेश होने की वजह से नाम रखा गया ''कहि देबे भइया ला संदेशÓÓ। कहानी तीजा पर भाई-बहन के स्नेह पर आधारित रखने का विचार हुआ लेकिन कालांतर में छूआछूत के खिलाफ स्टोरी लिखी गई तो नाम में भइया ला हटाकर कहि देबे संदेश रखा गया। नवंबर 1964 में फिल्म की शूटिंग छत्तीसगढ़ में पूर्व केन्द्रीय मंत्री बृजलाल वर्मा के रायपुर जिला स्थित पलारी ग्राम में हुई। 16 अपै्रल 1965 को रायपुर, भाटापारा, बिलासपुर में प्रदर्शित इस फिल्म ने इतिहास रचने के साथ ही सुर्खियां भी बहुत बटोरी।
उस दौर फिल्म को लेकर भारी विवाद हुआ ब्राह्मण और दलित की प्रेम कथा से कतिपय लोग उद्वेलित हो गए और प्रदर्शन नहीं करने की धमकियां भी। इसी वजह से तत्कालीन मनोहर टॉकिज कें मालिक पं. शारदा चरण तिवारी ने फिल्म के पोस्टर उतरवा दिए और प्रदर्शन रोक दिया। तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी ने विवाद के चलते फिल्म देखी और समाज में भेदभाव समाप्त करने के संदेश को सराहते हुए अखबारों को बयान दिया तो विवाद भी खत्म हो गए। इसके बाद मध्यप्रदेश राज्य सरकार ने फिल्म टैक्स फ्री किया तो टॉकिजों के संचालक इसे प्रदर्शित करने टूट पड़े। फिल्म ने सफलता पूर्वक प्रदर्शन कर इतिहास रचने के साथ ही मनु नायक का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया है।श्री नायक बताते है कि फिल्म निर्माण से लेकर प्रदर्शन तक उन्हे कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा। इस दौरान उन्हे खुशी तब मिली जब डॉ. हनुमंत नायडू ने एक पत्र लिखा कि साधारण वर्ग के दर्शक फिल्म को पसंद कर रहे है। यहां बता दे कि श्री नायक बालीवुड फिल्म इंडस्ट्रीज में बरसो से कार्यरत है। प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक महेश कौल के साथ वे फिल्म प्रोडक्शन में जुटे रहे। रणजीत स्टूडियो में उनके आफिस को ये संभालते रहे है। कहि देबे संदेश के बाद क्षेत्रीय भाषा में असमिया की दो, हरियाणा फिल्म और सुपर हिट सिंधी फिल्म हल ती भजी हलून में वे एसोसियेट रहे। छत्तीसगढ़ में वे सुंदरानी फिल्म प्रोडक्शन की मयारू भौजी के निर्देशक मनु नायक ही है। कहि देबे संदेश को दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल में दो बार प्रसारण होने के साथ ही मध्यप्रदेश फिल्म डीवीजन ने भी खरीदा और गांव-गांव में प्रचार के लिए 16 एम.एम. में प्रदर्शित किया। खट्टे-मीठे अनुभव के साथ उन्होने दूसरी छत्तीसगढ़ी फिल्म पठौनी की न केवल घोषणा की बल्कि उसके छह गाने रिकार्ड भी करवा लिए थे। काम में परफेक्शन नहीं होने की वजह से उन्होंने इसका निर्माण नहीं किया। गौरतलब है कि इसके लिए उन्होने बड़ी राशि खर्च की। छत्तीसगढ़ी कलाकारों को गाना गाने के प्रशिक्षण के लिए संगीतकार मलय चक्रवर्ती 15 दिन तक छत्तीसगढ़ में रहे और बाद में यहां से कलाकार मुंबई गए। कहि देबे संदेश के एक गाने में मुबारक बेगम द्वारा अंजोरिया को अंजुरिया उच्चारण के लिए पारिश्रमिक देकर विदा करने वाले श्री नायक काम के मामले में कोई समझौता नहीं करते। वे कहते है कि आज टैक्नोलॉजी ने बहुत सुविधाएं दी है लेकिन उस समय कलाकारों का समर्पण होता था। कहि देबे संदेश में मुंबई के कलाकारों ने जिस तरह छत्तीसगढ़ी में संवाद कहे वो उनकी गंभीरता को दर्शाता है। इस फिल्म की उन्होने डबिंग नहीं की थी। खट्टी-मीठी यादों को संजोए हुए श्री नायक उस दौर को बताते है कि वो ऐसा टाइम था जब सिनेमा देखना अच्छा नहीं समझा जाता था। फिल्म से बिगड़ जाने की धारणा थी तब फिल्म निर्माण करना कितना दुष्कर काम होगा कल्पना ही की जा सकती है। कहि देबे संदेश की ग्रेस्टेट टे्रेजेडी बताते हुए वे कहते है कि तब भी फिल्म चली और उन्होने सबका पैसा वापस लौटाया जिन्होने सहयोग दिया था। ठहाका लगाते हुए वे याद करते है कि जब भी मैं कड़का होता था तब राजकमल टॉकिज के सोलव साहब को कहता था कि कड़ाका हूं, फिल्म को मैटनी शोक में लगा दो, और वे सहर्ष लगा देते थे। गौरतलब है कि पहले टॉकिजों में दो पिक्चरें एक साथ चलती थी। मैटनी यानी 12 से 3 पहली और दूसरी बाकी तीन शो। सिंगल स्क्रीन थियेटर के बंद होने और मल्टीप्लेक्स के चलन को वे इंगित करते हुए कहते है कि सिनेमा बिजनेस कभी समाप्त नहीं होगा और छत्तीसगढ़ी फिल्में भी। वर्तमान में फिल्म नहीं बनाने की वजह वे स्पष्ट करते है कि प्रोफेशनली क्वालीफाइड लोग ठीक काम करते है लेकिन अब ग्लैमर के कारण प्रोफेशनल कम हो गए है। फिर वे हाथ जोड़कर काम करने की बजाए आर्डर करते रहे है जो न्यू जनरेशन के लिए मुफीद नहीं है। अंत में वे कहते है कि अब पूरी दुनिया में फिल्में एक्स्ट्रा आडिनरी होने पर ही चलती है फिल्म निर्माताओं को यह ध्यान रखकर ही फिल्म बनाना होगा।