मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

छत्तीसगढ़ में फिल्मे ठीक नहीं बन रही है - मनोज वर्मा

मौलिक कहानियों पर बने छत्तीसगढ़ी फिल्में
छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माता ,निर्देशक मनोज वर्मा का कहना है कि छत्तीसगढ़ में फिल्मे ठीक नहीं बन रही है। फिल्मे मौलिक कहानियों पर बनाना चाहिए तभी दर्शकों को पसंद आएगी। उन्होंने कहा कि डीजीटल तकनीक से फिल्म निर्माण और सफलतापूर्वक प्रदर्शन कर इस माध्यम से छालीवुड ने ही अन्य क्षेत्रों को दिया। उनकी पहली फिल्म बैर जो एचडीवी फार्मेट में बनी थी पहली बार पूरे परदे पर दिखाई गई। छालीवुड की फिल्में बहुत समय में पूरा ध्यान देकर बनती है लेकिन इसमें और सुधार की गुंजाइश से इंकार नहीं किया जा सकता।  बैर , महू दीवाना तहु दीवानी , मिस्टर टेटकूराम , दू लफाड़ू  जैसे सफल फिल्मो के निर्देशक  मनोज वर्मा संजीव बक्शी के उपन्यास भूलन कांदा  पर फिल्म बनाने जा रहे है। कहानी लिखने में तीन साल लग गए।
दैनिक सन स्टार ने उनसे हर पहलुओं पर विस्तार से बात की है।

० छत्तीसगढ़ी फिल्मो की क्या संभावनाएं हैं?
०० जबरदस्त है। जरुरत है सीखकर काम करने की। वे कहते है छत्तीसगढ़ी सिनेमा को चार-पांच लोग अपने कंधों पर जवाबदेही के साथ आगे बढ़ा रहे इसमें और ज्यादा लोग जुडऩे की जरूरत है खासतौर पढ़े-लिखे नवयुवक।
० छत्तीसगढ़ी सिनेमा अच्छा व्यवसाय करे इसके लिए क्या कर सकते हैं?
०० यहां फिल्मे  बन रही है । फिल्मे नहीं चल पाती इसकी वजह भी हैं और वो सब जानते हैं कि पिछड़े हुए राज्य में टॉकीजों का विकास नहीं होना। छत्तीसगढ़ में मिनी सिनेमाघर दो सौ दर्शकों की क्षमता वाली टॉकिजों की बड़ी आवश्यकता है जहां छत्तीगसढ़ी फिल्मों के दर्शक आसानी से पहुंच सके।
० आप इस क्षेत्र में कैसे आये ?
०० मेरी रूचि तो गायन में ही था और रहेगा। शौकिया तौर पर स्टूडियो खोला था , अब यही मेरा प्रोफेशन बन गया। मैने अब तक बैर, महू दीवाना तहूं दीवानी, मिस्टर टेटकूराम, छत्तीसगढ़ी फिल्म का निर्देशन किया है।
० जो नए लोग छालीवुड में आ रहे हैं उनके लिए क्या जरूरी है?
०० छत्तीसगढ़ी फिल्में ट्रायल एंड ऐरर पर चल रही है। जो नए लोग आ रहे हैं उन्हें फिल्म मेकिंग के संदर्भ में तकनीकी पहलुओं का भी ज्ञान होना चाहिए। इसके लिए फिल्म प्रशिक्षण संस्थान की आावश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता। इसका आशय यह भी है कि नए लोग निरूत्साहित हो जाए वे भी हाथ आजमाएं। और एक वजह यह भी जिसके चलते लगातार छत्तीगसढ़ी फिल्मे बन रही है। इस इंडस्ट्रीज का फ्यूचर ब्राइट है और आपार संभावनाएं हैं
०  छत्तीसगढ़ी फिल्मो में छत्तीसगढ़ी परिवेश वेशभूषा क्यों नहीं दिखाई देती?
०० वर्तमान परिवेश में जो है उसी के आधार पर वेशभूषा का उपयोग हो रहा है वो सही है। आजकल गाँव की लडकिया भी सलवार शूट में होती है ,तो साड़ी में दिखाना ठीक नहीं। फिल्मो  संस्कृति होती है और संस्कृति से फिल्मे बन रही है।
० छत्तीसगढ़ी फिल्मो के प्रदर्शन में कमी कहाँ होती है?
०० प्रचार प्रसार और विज्ञापन में कमी फिल्म नहीं चलने का सबसे बड़ा कारण है। थियेटर भी एक कारण हो सकता है। गाँव गाँव तक हम अपनी फिल्म नहीं पंहुचा पा रहे हैं। बेहतर प्रचार पसार हो और प्रदेश के सभी टाकीजों में फिल्म लग जाए तो लागत एक हप्ते में निकल आएगी।
० क्या छत्तीसगढ़ में नायिकाओं की कमी है कि बाहर से लाना पड़ता है?
०० हाँ जरूर है। जो क्लास नायिकाओं में होनी चाहिए यहां नहीं मिलती। जो अच्छी है वो यहां की बजाये मुम्बई में काम करना पसंद करती है।
० सरकार से छालीवुड को क्या मदद चाहिए?
०० 24 घंटे का एक ऐसा दूरदर्शन चैनल चाहिए जो सिर्फ छत्तीसगढ़ी भाषा पर ही हो। ताकि गांवों में रहने वाले भी देख सके। फिल्म सिटी और फिल्म विकास निगम बने। ताकि फिल्म निर्माण के लिए सभी सुविधाएं एक ही जगह पर मिल जाए।

1 टिप्पणी:

  1. सर यही तो बिडम्बना है कि कोई नए कलाकारों को लेता ही नही है,,

    जवाब देंहटाएं