शनिवार, 3 सितंबर 2016

" चमके रे बिंदिया " से चमकी अल्का चंद्राकार

सरकार कलाकारों के लिए आगे आएं 
- श्वेता शर्मा
छत्तीसगढ़ की मशहूर पार्श्वगायिका अलका परगनिहा (चंद्राकर) आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। वे छत्तीसगढ़ी लोकगीतों , लोककला की आदर्श है।उनकी आवाज में गजब की जादू है। जब वे गाती हैं तो लोग अपना दर्द भूल जातें है। वे कहती हैं कि अपने पिता जी को सुनकर संगीत को महसूस करना सीखा है. वे
चाहती हैं कि वही एहसास अपनी गायकी मे डालें और अपने सुनने वालों को सुकुन का एहसास कराये। संगीत उन्हें अपनी परिवार से विरासत में मिली है। छालीवुड की बेस्ट सिंगर का एवार्ड कई बार हासिल कर चुकी अल्का चंद्राकार संगीत के हर अंदाज़ को जीना चाहती है और कुछ नया करना चाहती है।उनकी खुद की एल्बम " चमके रे बिंदिया " ने ना केवल प्रदेश और भाषा को नई दिशा दी बल्कि उनकी जीवन में भी नई चमक ला दी। यहीं से उन्हें ऊंचाईयां मिली और आज वे एक मशहूर गायिका है।वे अपने पिताजी के लोककला मंच फुलवारी को लेकर आगे बढ़ रही हैं। उनका मानना है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो में तकनीक की कमी होती है और सरकार भी लोककला के प्रति रूचि नहीं दिखा रही है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ी फ़िल्में दर्शकों को नहीं रिझा पा रही है। 100 से अधिक एल्बम औरफिल्मों मे अपनी आवाज का जादू बिखेर चुकी अल्का चंद्राकार से हमने हर पहलुओं पे बेबाक बात की है।
० आपको गाने का शौक कैसे हुई?
०० मेरे पिताजी श्री माधव चन्द्राकर  गायक हैं कला मुझे विरासत में उन्ही से मिली है। उन्होने मुझे बचपन से ही सिखाना शुरू कर दिया था।
० किसी ने आपको प्रोत्साहित किया या फिर मर्जी से गाने लगी?
०० मेरे पिताजी ही मेरे पहले गुरू हैं और मेरे प्रेरणाश्रोत भी।
०सरकार से आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
०० सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।
० छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है?
०० क्योकि यहां की फिल्मो में बहुत सारी कमियां होती है। फिल्मो में वो गुणवत्ता नहीं होती जो यहां के लोगो को चाहिए।तकनीक की कमी ने छत्तीसगढ़ी दर्शकों को दूर कर रखा है।प्रोड्यूसरों को इस और ध्यान देने की जरुरत है।
० छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति को आगे बढ़ाने की दिशा में फिल्म का योगदान कितना है?
०० अपनी संस्कृति और भाषा को आगे बढ़ाने का सशक्त माध्यम है सिनेमा । हम भी फिल्मो के माध्यम से लगातार अपनी भाषा की तरक्की के लिए ही काम करते है।हम चाहते है कि हमारी भाषा खूब आगे बढ़े।
० आपकी कोई तमन्ना है जिसे लेकर आप आगे बढ़ रही है
००  मैं छत्तीसगढ़ी लोकगीत जो आज अपना स्थान नहीं प्राप्त कर पाई है।उसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित और पहचान दिलाना चाहती हूँ।मैं और मेरे पति श्री अमित परगनिहा ने छत्तीसगढ़ी लोक कला , लोकगीत और लोक नृत्य के विकास और उसमें लोगो को पारंगत करने के उद्देश्य से एक महाविद्यालय खोलने की तैयारी में है।जिससे हमारी लोक कला और लोकगीतों में भी पारंगत लोग आ सके और दूसरे प्रदेशों के लोक कलाकारों के बराबर आ सके।
० आपने गायकी का क्षेत्र ही क्यों चुना ?
०० गायन मेरे पिता से बचपन से प्राप्त हुआ।और ईश्वर के आशीर्वाद से मेरे ससुराल से भी पूरा सपोर्ट रहा।मेरे पति श्री अमित परगनिहा दिल्ली यूनिवर्सिटी से  एमबीए है।उनका कला या गायन से लगाव की वजह से वो मेरी पूरी तरह सेसपोर्ट रहता है।
० आप छत्तीसगढ़ से है तो क्या हिन्दी या भोजपुरी फिल्मो के लिए भी गाना गायेंगी?
०० भोजपुरी ।हां मैंने मराठी , उड़िया में गाने गाए है।भोजपुरी के लिए भी तैयार हूँ।
० आपका आदर्श कौन है , जिसे आप फॉलो करती है ?
०० लता मंगेशकर जी ।
० भविष्य की क्या योजनाएं हैं?


०० अभी हम आदिवासी संस्कृति, लोकगायिकी, का कलेक्शन करने जा रहे हैं , ताकि हम प्रदेशवासियों को जनजातीय परिवेश और संस्कृति से परिचित करा सकें।