रविवार, 19 अगस्त 2018

राजू पांडे को हर भूमिका पसंद है

छालीवुड को ही अपनी जिंदगी मानते हैं 
छत्तीसगढ़ के कलाकार राजू पांडे अब छालीवुड को ही अपनी जिंदगी मानते हैं। आठ फिल्मो में अपनी किस्मत आजमा चुके राजू को माटी मोर मितान फिल्म में ब्रेक मिला उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुडकऱ नहीं देखा और आगे बढ़ते गए। राजू पांडे को अपनी नई फिल्म रंगोबती से बहुत उम्मीद है। वे कहते हैं कि प्रचार प्रसार और विज्ञापन में कमी फिल्म नहीं चलने का सबसे बड़ा कारण है। थियेटर भी एक कारण हो सकता है। गाँव गाँव तक
हम अपनी फिल्म नहीं पंहुचा पा रहे हैं। बेहतर प्रचार पसार हो और प्रदेश के सभी टाकीजों में फिल्म लग जाए तो लागत एक हप्ते में निकल आएगी। सरकार मदद नहीं करती और डिस्ट्रीब्यूशन भी सही नहीं है। जब तक टेक्नीकल क्षेत्र में एक्सपर्ट लोग नहीं होंगे तब तक ऐसी ही कमजोर फिल्मे बनती रहेंगी। यहां जिसे जो नहीं आता वही करते हैं । गायक निर्देशक बन जाता है। कोई भी फाइट मास्टर बन जाता है। आप अंदाज लगा ले कैसी फिल्मे बनेंगी। छालीवुड की संभावनाएं अच्छी है पर फिल्मे अच्छी नहीं बन रही है। राजू को एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। स्कूल में नाटकों में भाग लिया करते थे फिर नाटकों में किया। जब जब टीवी देखता था तब तब उसे लगता था कि मुझे भी कुछ बनना चाहिए । आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए । थियेटरों  की कमी को सरकार पूरा करे।छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है? के जवाब में राजू का कहना है कि यहां की फिल्मो में बहुत सारी कमियां होती है। फिल्मो में वो गुणवत्ता नहीं होती जो यहां के लोगो को चाहिए। प्रोड्यूसरों को इस और ध्यान देने की जरुरत है।राजू का कोइ रोल मॉडल नहीं है। नाटकों में भाग लेने के बाद लोगो ने उनका अभिनय देखा और फिल्मो में मौका दिया।  हैं कि शुरू से ही मै एक्टिंग को साइड कॅरियर बनाने की सोचकर चला हूँ। अब इसी लाईन पर काम करता रहूंगा। उन्हें हर तरह की भूमिका पसंद है लेकिन निगेटिव रोल ज्यादा पसंद है।उनका कहना कि सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।

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