रविवार, 19 अगस्त 2018

खलनायिकी करना चाहती है सरला सेन

इस माह होगी उनकी 3 फि़ल्में रिलीज 
छत्तीसगढ़ी फिल्मो की दयालु भौजी और माँ सरला सेन की तमन्ना खलनायकी करने की है, वो भी एकदम खूंखार। सात साल की छोटी सी पारी में 30 - 35 फिल्मे करने वाली सरला सेन एक बेहतरीन अदाकारा है. उन्हें अपने काम के प्रति जूनून है। उनका कहना है कि मन में लगन हो तो कोइ भी काम असंभव नहीं होता। कोशिश करने वाले कभी असफल नहीं होते।  उनका सपना निगेटिव रोल करने की है. सरला की इस माह तीन फिल्मे तोर मोर यारी , बंधन प्रीत के और हमर फेमिली नंबर वन प्रदर्शित होने जा रही है. यह उनकी खुशकिस्मती है कि लगातार परदे पर दिखाई देंगी। तीनों ही फिल्मो में सरला माँ की भूमिका में है.सरला की नजर में बंधन प्रीत के एक ऐसी फिल्म है जो दर्शकों का खूब मनोरंजन करेगी। इस फिल्म में वे नायक रियाज खान की माँ की भूमिका में है.यह एक पारिवारिक फिल्म है जिसमे सब कुछ है रोमांस, एक्शन, मारधाड़, इमोशनल आदि. तोर मोर यारी दो परिवारों की कहानी है. जिसंमें वे पुष्पेंद्र सिंह की पत्नी रहती है.तीसरी फिल्म हमर फेमिली नंबर वन है यह भी एक पारिवारिक और कॉमेडी से भरपूर फिल्म है.सरला कहती है कि ये तीनों ही फिल्म मेरे लिए बहुत ही अहम् है. जिसमे दर्शक मुझे पसंद करेंगे ऐसी उम्मीद हैं.मैंने अपने स्तर पर बहुत ही मेहनत की है.मुझे जो भूमिका मिलती है उसके साथ न्याय करने की भरपूर कोशिश करती हूँ. शूटिंग से पहले अच्छी तरह से स्क्रिप्ट पढ़ती हूँ फिर पूरी तैयारी के साथ कैमरे के सामने जाती हूँ. छालीवुड की सम्भावनाओं के
बारे में उनका कहना है कि जब तक टेक्नीकल क्षेत्र में एक्सपर्ट लोग नहीं होंगे तब तक ऐसी ही कमजोर फिल्मे बनती रहेंगी। यहां जिसे जो नहीं आता वही करते हैं । गायक निर्देशक बन जाता है। कोई भी फाइट मास्टर बन जाता है। कोई प्लानिंग नहीं होती जो पैसा नहीं लेते वही कलाकार यहाँ चलते है। तो आप अंदाज लगा ले कैसी फिल्मे बनेंगी। यहां फिल्मे कमजोर बन रही है । फिल्मे नहीं चल पाती इसकी वजह भी हैं और वो सब जानते हैं कि पिछड़े हुए राज्य में टॉकीजों का विकास नहीं होना। छत्तीसगढ़ में मिनी सिनेमाघर दो सौ दर्शकों की क्षमता वाली टॉकिजों की बड़ी आवश्यकता है जहां छत्तीगसढ़ी फिल्मों के दर्शक आसानी से पहुंच सके। प्रचार प्रसार की कमी है। छत्तीसगढ़ी फिल्मे अच्छा व्यवसाय क्यों नहीं कर पाती ? इसके जवाब में सरला कहती है कि प्रचार प्रसार और विज्ञापन में कमी फिल्म नहीं चलने का सबसे बड़ा कारण है। थियेटर भी एक कारण हो सकता है। गाँव गाँव तक हम अपनी फिल्म नहीं पंहुचा पा रहे हैं। बेहतर प्रचार पसार हो और प्रदेश के सभी टाकीजों में फिल्म लग जाए तो लागत एक हप्ते में निकल आएगी। सरकार मदद नहीं करती और डिस्ट्रीब्यूशन भी सही नहीं है। वे कहती है कि मुझे आज तक पसंद का रोल नहीं मिला। खूंखार करेक्टर चाहिए ,पता नहीं कभी मिल पायेगा या नही।खलनायिका का रोल करना चाहती हूँ.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें