जिस तरह से छत्तीसगढ़ प्राकृतिक विविधताओं से संपन्न है ठीक उसी प्रकार यहां की लोक संगीत विविधताओं से भरी पड़ी है। छत्तीसगढ़ की लोक परंपरा में जन्म से लेकर मृत्यु तक हर संस्कार के लोक संगीत हैं। यह लोक संगीत न केवल मनोरंजन के लिए हैं बल्कि संस्कार प्रदान करने के साथ ही प्रकृति के सत्य की तह तक जोडऩे वाले हैं। यह कहना है कि छत्तीसगढ़ी फिल्म 'महू कुंवारा तहु कुवारीÓ के निर्देशक मनोज वर्मा का। मनोज वर्मा छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री में अजीम शख्सियत के रुप में पहचाने जाते हैं। उन्हें राज्य में फिल्म और कला के क्षेत्र कासर्वश्रेष्ठ सम्मान किशोर साहू सम्मान मिल चुका है। फिल्म और लोककला के क्षेत्र में इतनी ऊंचाई हासिल करने के बाद भी मनोज वर्मा संगीत की बारीकियों को समझने के लिए इंदिरा कला संगीत
विश्वविद्यालय खैरागढ़ से पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल कर रहे हैं। इसमें उन्हें देश के सभी राज्यों के लोकसंगीत का अध्ययन कराया गया है। श्री वर्मा ने खास बातचीत में छत्तीसगढ़ी लोक संगीत को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बताया। इसके पीछे की वजह को विस्तार से बताते हुए उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ी लोकसंगीत वृहद और विविधताओं से भरी पड़ी है। यहां केवल कर्मा की प्रस्तुति 30 प्रकार से की जाती है। इसी तरह से ददरिया, नाचा व अन्य संगीत की परंपराएं हैं। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ का लोक संगीत केवल मनोरंजन से नहीं बल्कि संस्कार और जीवन के सत्य से जुड़ा हुआ है। मनोज वर्मा की पारिवारिक पृष्ठभूमि संगीत के क्षेत्र से नहीं रही। उन्होंने शिक्षा भी अर्थशास्त्र विधा में प्राप्त की है पर संगीत के प्रति उनके लगाव ने उन्हें फिल्म और निर्देशन के क्षेत्र में खींच लाया। वह बताते हैं कि वर्ष 2007 में उन्होंने 'बैरÓ नाम से छत्तीसगढ़ी फिल्म का निर्माण किया था। इस फिल्म के वह निर्माता और निर्देशक दोनों रहे। तब से अब तक वह पांच फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं। छठवीं फिल्म के रुप में हाल ही में उन्होंने छत्तीसगढ़ी फिल्म 'महू कुंवारा तहु कुवारीÓ का निर्देशन किया है। यह फिल्म बनकर तैयार है और 26 अप्रैल को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। फिल्म के बारे में उन्होंने बताया कि यह पूरी तरह से कॉमेडी पर आधारित है। यह युवा वर्ग को बेहद पसंद आयेगी।
बदलते परिवेश के साथ फिल्मों को भी बदलना होगा
छत्तीसगढ़ी फिल्म की स्वीकार्यता और सफलता के सवाल पर मनोज वर्मा ने साफ कहा कि जिस तरह से आधुनिकता की दौड़ में समाज का परिवेश बदल रहा है उससे तालमेल करते हुए फिल्मों को भी बदलना होगा। अब पुराना ट्रेंड लोगों को पसंद नहीं। इंटनेट की गांवों तक पहुंच ने युवा वर्ग को बेहद जागरुक कर दिया है। हमें ऐसी फिल्में बनानी होगी जिससे आज का युवा उससे खुद को कनेक्ट कर सके। तभी फिल्मों की स्वीकार्यता भी होगी और सफलता भी मिलेगी।
विश्वविद्यालय खैरागढ़ से पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल कर रहे हैं। इसमें उन्हें देश के सभी राज्यों के लोकसंगीत का अध्ययन कराया गया है। श्री वर्मा ने खास बातचीत में छत्तीसगढ़ी लोक संगीत को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बताया। इसके पीछे की वजह को विस्तार से बताते हुए उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ी लोकसंगीत वृहद और विविधताओं से भरी पड़ी है। यहां केवल कर्मा की प्रस्तुति 30 प्रकार से की जाती है। इसी तरह से ददरिया, नाचा व अन्य संगीत की परंपराएं हैं। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ का लोक संगीत केवल मनोरंजन से नहीं बल्कि संस्कार और जीवन के सत्य से जुड़ा हुआ है। मनोज वर्मा की पारिवारिक पृष्ठभूमि संगीत के क्षेत्र से नहीं रही। उन्होंने शिक्षा भी अर्थशास्त्र विधा में प्राप्त की है पर संगीत के प्रति उनके लगाव ने उन्हें फिल्म और निर्देशन के क्षेत्र में खींच लाया। वह बताते हैं कि वर्ष 2007 में उन्होंने 'बैरÓ नाम से छत्तीसगढ़ी फिल्म का निर्माण किया था। इस फिल्म के वह निर्माता और निर्देशक दोनों रहे। तब से अब तक वह पांच फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं। छठवीं फिल्म के रुप में हाल ही में उन्होंने छत्तीसगढ़ी फिल्म 'महू कुंवारा तहु कुवारीÓ का निर्देशन किया है। यह फिल्म बनकर तैयार है और 26 अप्रैल को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। फिल्म के बारे में उन्होंने बताया कि यह पूरी तरह से कॉमेडी पर आधारित है। यह युवा वर्ग को बेहद पसंद आयेगी।
बदलते परिवेश के साथ फिल्मों को भी बदलना होगा
छत्तीसगढ़ी फिल्म की स्वीकार्यता और सफलता के सवाल पर मनोज वर्मा ने साफ कहा कि जिस तरह से आधुनिकता की दौड़ में समाज का परिवेश बदल रहा है उससे तालमेल करते हुए फिल्मों को भी बदलना होगा। अब पुराना ट्रेंड लोगों को पसंद नहीं। इंटनेट की गांवों तक पहुंच ने युवा वर्ग को बेहद जागरुक कर दिया है। हमें ऐसी फिल्में बनानी होगी जिससे आज का युवा उससे खुद को कनेक्ट कर सके। तभी फिल्मों की स्वीकार्यता भी होगी और सफलता भी मिलेगी।
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