मंगलवार, 14 जनवरी 2020

प्रतिस्पर्धा की होड़ में छालीवुड

प्रतिस्पर्धा छालीवुड के लिए ठीक नहीं – मोहन सुन्दरानी 
हर माह आये एक फिल्म, तो ही अछा – संजय बत्रा 
- रोहित बंछोर
छत्तीसगढ़ फिल्म इंडस्ट्री 20 साल के सफ़र में आज भी ठीक से स्थापित नहीं हो पाए हैं इसका कारण जो भी हो लेकिन फिल्मों की होड़ से यह इंडस्ट्री आगे जाने के बजाय पीछे ही जायेगी. फिल्मे बनना अच्छी बात है इससे कलाकारों को रोजगार तो मिलता है लेकिन फिल्मे ज्यादा व्यवसाय नहीं कर पाती जिससे सीधे सीधे निर्माताओं को ही नुकसान होता है. छत्तीसगढ़ की जनता हर सप्ताह एक फिल्म देखने की स्थिति में नहीं है, हाँ माह में एक फिल्म जरुर देख सकते हैं. फरवरी माह में सात छः फिल्मे रिलीज हो रही है. 7 फरवरी को आ जा नदिया के पार, दईहान और बेनाम बादशाह फिल्म. 14 फरवरी को तैं मोर लव स्टोरी, 21 फरवरी को जय भोले मया मा डोले और 28 फरवरी को तोर मोर यारी. अब दर्शक क्या एक हप्ते में ये छः फिल्मे देखा पायेंगे, प्रतिस्पर्धा का क्या नतीजा होगा, क्या इस तरह एक साथ कई फिल्मे रिलीज होनी चाहिए, आईये जानते हैं हमारे निर्माता निर्देशक क्या कहतें हैं?
प्रतिस्पर्धा ठीक नहीं – मोहन सुन्दरानी
छालीवुड के भीष्मपितामह मोहन सुन्दरानी का इस क्षेत्र में अछा खासा लंबा अनुभव है. वे कहतें हैं कि इस तरह की प्रतिस्पर्धा ठीक नहीं है. आज तो कुछ भी फिल्मे बन रही है. फिउल्मे अच्छी बने तभी छत्तीसगढ़ के दर्शक फिल्म देखेंगे. हामरे दर्शक इतने अमीर नहीं है कि हर सप्ताह एक फिल्म देखें, अछा होगा कि माह में एक या दो फिल्मे ही रिलीज हो. अन्यथा निर्माता को सीधे सीधे नुकसान होगा. कलाकारों को तो उनकी मेहनत का फल पहले ही मिल जाता है. अब फरवरी में ६ फिल्मे आ रही है ये दर्शकों पर बोझ की तरह है किसे देखे किसे नहीं. अगर प्रतिस्पर्धा होती रही तो इस फिल्म इंडस्ट्री को बह्गुत ही नुकसान होगा.
हर हप्ते एक फिल्म ठीक नहीं – संजय बत्रा 
छालीवुड के लिजेंड एक्टर जो बालीवुड में भी धूम मचा रहे हैं का कहना है कि हर हप्ते एक फिल्म का रिलीज होना कतई ठीक नहीं है. माह में एक फिल्म आये तो दर्शक देख पायेंगे. छत्तीसगढ़ में ऐसा दर्शक नहीं है जो अपना कामधाम छोइदकर हर हप्ते फिल्म देखने जाएँ. प्रतिस्पर्धा कतई ठीक नहीं है यहाँ मनोरंजन का मामला है कोइ व्यवसाय नहीं. हाँ एक बात और फिल्म साल में भले ही दो चार बने लेकिन अच्छी कहानी पर ही बने , गुणवत्ता भी ठीक हो वरना छालीवुड का भगवान् ही मालिक होगा. आज तो हालात ये है कि किसी भी विषय पर कुछ भी फिल्मे बन रही है जिससे छालीवुड आगे जाने की बजाय पीछे ही जा रहा है.
ऐसी प्रतिस्पर्धा के ही ख़िलाफ़ हूँ  - नीरज श्रीवास्तव
इतनी अधिक संख्या में छत्तीसगढ़ी फिल्मों का निर्माण होना वाकई में सुखद एहसास कराता है , इसमें कोई दोराय नहीं है ।परंतु एक निर्माता फ़िल्म का भला निर्माण करता क्यों है ? सीधी सी बात है क्यूँकि अधिक से अधिक संख्या में दर्शकों का प्यार उस फ़िल्म को प्राप्त हो सके । मगर इन दिनों हमारी छोलीवुड इंडस्ट्री में एक ही महीने में छह फ़िल्मों को रिलीज़ करने का लेटेस्ट फ़ार्मूला पेश किया जा रहा है । मेरी मानें तो यह नया एक्सपेरिमेंट दर्शकों के साथ - साथ निर्माता - निर्देशकों के लिए भी निश्चित ही हानिकारक है । बतौर निर्देशक में तो कभी भी नहीं चाहूँगा कि मेरी फ़िल्में उस महीने सिनेमाघरों में आये जिस महीने छह और अलग -अलग फ़िल्में प्रदर्शित होने को तैयार हैं । सच कहूँ तो मैं ऐसी प्रतिस्पर्धा के ही ख़िलाफ़ हूँ । मेरा मानना है कि हमें मिलकर इस छोलीवुड इंडस्ट्री को और आगे बढ़ाने एवं सशक्त बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए ना की फल फूल रहे इस उद्योग को डुबाने में अपना समय लगाना चाहिए। रिलीजिंग में कोई भी कॉम्पिटिशन नहीं होना चाहिए।
प्रतिस्पर्धा अवश्य होना चाहिए-अलीम बंशी 
फिल्में चलाने हेतु कुछ महीने ही उपयुक्त होते हैं जिसमें अधिक व्यवसाय की उम्मीद निर्माता करता वह किसी को बोल तो सकता नहीं कि आप मत लगाओ मैं अपनी फिल्म लगा लगाऊंगा अब अगर फिल्म बनाया है निश्चित रूप से उसे व्यवसाय करना है और वह मार्केट पर आएगी ही चाहे संख्या जो भी हो.प्रतिस्पर्धा अवश्य होना चाहिए प्रतिस्पर्धा होने से हम अपनी कमियों को समझ पाएंगे निश्चित रूप से वह दिन आएगा जब हम दर्शकों की चॉइस को पहचान पाएंगे हमें दर्शक को क्या देना है छोटी इंडस्ट्रीज तो टॉलीवुड भी थी पर निर्माण अच्छा किया जाना शुरु किया गया दर्शकों की नब्ज पहचान ली गई तो वह बॉलीवुड को भी पीछे छोड़ता है. रहा प्रश्न नतीजे का हम धीरे-धीरे अब मेकिंग की ओर खुद ही बढ़ रहे हैं हम खुद ही फैसला कर रहे हैं कि दर्शकों को क्या देना है जब तक हम धोखा नहीं खाएंगे तब तक सीख नहीं पाएंगे मेकिंग मेकिंग होती है उसके लिए अनुभव की आवश्यकता होती है अनुभव से कई निर्माता और कंपनियां कार्य कर रही है कुछ का रिजल्ट बहुत अच्छा आता है कुछ कुछ सामान्य होता है यदि हम छत्तीसगढ़ी फिल्म की बात करें तो हमारे पास संस्कृति ही मुख्य संस्कृति के गीत संगीत कथा को साथ ले चलें तरक्की संभव है हमें इस बात को ध्यान रखना होगा कैमरा पकड़ लेने से आर्टिस खड़े हो जाने से फिल्म नहीं बन जाती अनुभव जरूरी है वरना डुब्बत में आते रहेंगे
पूरी इंडस्ट्री को उठाना पड़ेगा नुकसान - अम्न हुसैन
 हमारी इंडस्ट्री छोटी है दर्शक कम है एक-एक सप्ताह में फिल्म लगेगी तो दर्शक बार-बार टॉकीज तक फिल्म देखने नहीं आएंगे अगर ऐसा होता है तो चंद खराब फिल्मों के साथ एक अच्छी फिल्म भी पीस जाएगी दर्शक उसे भी नहीं देखने आएंगे और इसका नुकसान कुल मिलाकर पूरी इंडस्ट्री को उठाना पड़ेगा।
प्रतिस्पर्धा स्वस्थ  होनी चाहिए- डॉ अजय सहाय 
फिल्म हर हप्ते नहीं लगना चाहिए ,क्यों देखेगा कोई ?  इंसान टाइम क्राइसिस के दौर से गुजर रहा है और भी काम हैँ जमाने मेँ ! प्रतिस्पर्धा तॊ प्रकृति के प्रादुर्भाव से ही रही है हर जगह , चाहें वो इन्सान हो या जीव जंतु । जहॉं  प्रतिस्पर्धा होती है वहाँ लक्ष्य पाने के लिए जोश भी बढ़ जाता है और एक से बढ़ कर एक सुखद परिणाम सामने आते है । डार्विन के अनुसार जो सबसे ज्यादा "फिट" हॊता है वही "सर्वाइव" करता है (survival of the fittest) बाकी सब विलुप्ति के कगार पर पहुंच जाते हैँ । सर्वाइव वही करेगा जो बतौर  चेलेंज काम करेगा । प्रतिस्पर्धा स्वस्थ  होनी चाहिए,  उसमें दुश्मनी या नफरत  की बू नहीँ आनी चाहिए । इतनी सारी फ़िल्में एक साथ रिलीज़ होने से कुछेक  अच्छी फ़िल्मेँ  ही चल पाएंगी ,  बाकी सब नुकसानदायी साबित होंगीं । आखिर करेँ भी तॊ क्या ?  निर्माताओं के पास कोई विकल्प भी तॊ नहीँ है । छत्तीसगढ़ी फ़िल्मों की बाढ़ सी आ गयी है । जिसे  देखो वो कलाकारों से  चंदा लेकर  व नाना प्रकार के जुगाड़ लगाकर फ़िल्में बना रहा है ।  अनगिनत फिल्में बनी पड़ी हैँ । निर्माताओं पर निवेशकों व कलाकारों का दबाव है । उन्हें लगाना मजबूरी सी है ..।
ज़मीनी हकीकत भी समझना होगा- रजनीश 
वैसे फरवरी माह में स्वयं मेरी ही 3 फिल्म्स आ रही है, पर अलग अलग डेट में, यथा 7 फरवरी को दईहान 14 फरवरी को तए मोर लव स्टोरी(नाम बदल के) 21 फरवरी को जय भोले मया मा डोले, इसी माह बेनाम बादशाह और ले चल नदिया के पार के भी रिलीज होने की जानकारी मिली है,इस तरह 5 फिल्म्स की जानकारी है मेरे पास,,,,हालाकि ज़मीनी हकीकत भी समझना होगा रिलीज की तैयारियोँ को ले के,,,,घोषणाएं तो होती रहती हैं और समय से बदल भी जाती है,,,,ये सब परिदृश्य जनसँख्या विस्फोट की तरह दिखता है मुझे,,,,ये व्यापार है,,,जो जिद के उन्माद में साक्षात हो रहा, छोटी सी हमारी दुनिया है परिस्थितनुसार उसके हिस्से बाँट कर क्रमवार सब चलेंगे तो  कुछ संभावना है सफलता की,,,पर एक ही शहर के अलग-अलग सिनेमा में एक ही डेट में अलग-अलग छत्तिसगडी फिल्म लगती है तो दर्शक फिल्म चयनित कर देखने के मोड में आ जाता है, और निर्माता की कमाई बट जाएगी,,,,यहाँ प्रतिस्पर्धा का जन्म होगा,,,जो बेहतर फिल्म ले के आयेगा वो एडवांटेज में रहेगा ।
राज साहू की अपील – ना लगाएं फिल्म 
फिल्म जोहार छत्तीसगढ़ के निर्माता राज साहू का कहना हैं कि इस तरह फिल्म रिलीज करने से निर्माताओं को अच्छा खासा नुकसान होगा और दर्शकों को भी मनोराब्न्जन नहीं मिल पायेगा. उन्होंने फिल्म निर्माताओं से अपील की है कि 31 जनवरी को जोहार छत्तीसगढ़ रिलीज हो रही है जिसे अभी से लोगों का आशीर्वाद मिल रहा है ऐसी स्थिति में फरवरी में फ़िल्में रिलीज ना करें ताकि छत्तीसगढ़ी फिल्म जोहार छत्तीसगढ़ को अपार सफलता मिल सके. कम समय में लगातार फिल्मो के रिलीज होने से फिल्मों को ही नुकसान होगा.
बिलकुल भी रिलीज नहीं होनी चाहिए – अलक
फिल्म निर्माण से फिल्म वितरण के क्षेत्र ने झंडा गाड़ने वाले अलक राय कहतें हैं कि बिलकुल भी लगातार फिल्मे रिलीज नहीं होनी चाहिए. अपनी फिल्म इंडस्ट्री बहुत ही छोटी है यहाँ लोगो को मिलजुलकर फिल्म के हित में काम करना चाहिए. ताकि फिल्मों का भविष्य सुनहरा रहे और एक निर्माता जो बड़ी मेहनत से पैसा लगाकर फिल्म बनाता है उसकी रिकवरी के भी चांसेस होना चाहिए.
लगातार फिल्मे देखना संभव नहीं – अरविंद मिश्र 
शिक्षाविद, साहित्यकार, समाजसेवा में जुटे अफसर अरविंद मिश्र का कहना है कि लगातार छत्तीसगढ़ी फिल्मे देखना हमारे दर्शकों के लिए संभव ही नहीं है. इसलिए बहुत ही सोच समझकर फिल्मे रिलीज किया जाना चाहिए. प्रतिस्पर्धा अच्छी बात है लेकिन स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए. स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो तो फिल्मों की गुणवत्ता बढेगी. एक साथ कई फिल्मे यी हर हप्ते एक फिल्मे रिलीज नहीं होनी चाहिए इससे निर्माताओं का ही नुकसान है. 

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