शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

ए टी म्यूजिक का यूट्यूब में धमाका

छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माता अजय त्रिपाठी ने यूट्यूब में ए टी म्यूजिक वर्ल्ड के रूप में तहलका मचा दिया है।  उनके गाने खूब पसंद किये जा रहे हैं. अजय ने चारामा मे पत्रकारिता से अपनी सार्वजनिक जीवन की शुरूवात की थी, पहले फिल्मो में आये और तोर मोर यारी फिल्म बनाई।  इस फिल्म में उन्होंने अभिनय भी किया है. अब यूट्यूब प् धमाल कर रहे हैं. आजा आजा मोर मैना मंजूर गीत अभी यूट्यूब पर लोग खूब देख सुन रहे हैं.गीतकार संगीतकार घनश्याम महानंद है। अजय त्रिपाठी और पूजा देवांगन ने इस गीत पर शानदार अभिनय और डांस करसबका दिल जीत लिया है. कांसेप्ट भीआजाय त्रिपाठी का ही है जिसे कोरियोग्राफ किया है चंदनदीप ने.अजय  त्रिपाठी का कहना है कि फिल्म दुनिया में तो हम है ही लेकिन आज ज़माना यूट्यूब का है इसलिए मैंने इस क्षेत्र में भी कदम रखा है.

छालीवुड में संध्या वर्मा की धमाकेदार एंट्री

छत्तीसगढ़ी फिल्मो में मौलिकता और संस्कृति की कमी झलकती है
- अरुण कुमार बंछोर
छत्तीसगढ़ी फिल्मो की उभरती नायिका संध्या वर्मा की दिली तमन्ना छत्तीसगढी फिल्मे लगातार करने और अपने माता पिता का नाम रौशन करने की है.फिल्म सनम तोर कसम मेवे नायिका है और वे इसी फिल्म से
छालीवुड में धमाकेदार एंट्री करने जा रही है. धमाकेदार हम इसलिए कह रहे हैं क्योकि इस फिल्म में संध्या ने बहुत ही शानदार अभिनय किया है. ट्रीजर में ही इसकी झलक दिखती है। संध्या ने सिंगिग से अपने कॅरियर की शुरुआत की थी और आज छत्तीसगढ़ी फिल्मों का एक हिस्सा बन गयी है। उन्होंने एक हिंदी की भी एक फ़िल्में की है। अब वे लगातार फिल्मे ही करते रहना चाहती है। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो में मौलिकता और छत्तीसगढ़ी संस्कृति की कमी झलकती है।
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। जब मै छोटी थी तभी से फिल्म देकहती आ रही हूँ। तभी से कुछ अलग करने की सोच ली थी। मन में लगन हो तो सब संभव है। मैंने थियेटर ज्वाइन किया और आज इस मुकाम पर हूँ।
0 छालीवुड की क्या सम्भावनाये दिखती है?
00 बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ऑर है।
0 तो छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है?
00 क्योकि यहां की फिल्मो में अपनी संस्कृति और मौलिकता की कमी झलकती है। कलाकारों का चयन भी पात्रों के अनुसार नहीं होता क्योकि निर्माता सबसे पहले फाइनेंसर की तलाश में होता है। जो पैसा लगाता है वो कलाकार बन जाता है।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 एक्टिंग मैंने खुद से सीखा है। मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। मै थियेटर से आई हूँ। मेरी पहली फिल्म एक हॉरर फिल्म है। सही मायने में मेरी पहली फिल्म सनम तोर कसम है जो बड़े परदे पर आने वाली है। इसके पहले बरात ले के आ जा में सेकण्ड लीड रोल में हूँ. मेरे माता पिता सिंगर है जिससे मुझे कला विरासत में मिली है.
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चली थी । इसी लाईन पर काम करती रहूंगी।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगी।
00  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगी ताकि मुझे सभी प्रकार का अनुभव हो। छोटे बड़े सभी रोल मुझे पसंद है। मैं किसी भी भाषा की फिल्म हो जरूर करूंगी।
0 आप फिल्मो में भूमिका को लेकर कैसा महसूस करते हैं ?
00 जब मैं कोई भूमिका निभाती हूँ तो पहले गंभीरता से मनन करती हूँ। उसमे पूरी तरह से डूब जाती हूँ।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
00 छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहती हूँ। अब लगातार फिल्मो में ही काम करते रहने की तमन्ना है। 

गुरुवार, 23 जनवरी 2020

" फिल्मसिटी " की घोषणा पर छिड़ी बहस

0 इस मुद्दे पर बटें नजर आये फ़िल्म निर्माता
0 कोई सरकार के साथ तो कोई विरोध में
अरुण बंछोर/ श्रीमती केशर सोनकर
रायपुर । राज्य सरकार ने रायपुर में फिल्मसिटी बनाने की घोषणा की है उसके साथ ही प्रदेश भर में इस निर्णय का विरोध भी शुरू हो गया है। छालीवुड के फ़िल्म निर्माताओं ने दो टूक शब्दों में कहा है कि उन्हें फिल्मसिटी नही बल्कि प्रदेश भर में थियेटर चाहिए। वहीं कुछ निर्माताओं का कहना है कि फिलसिटी तो चाहिए ही ,  थियएटर है उसी में हम फिल्म नहीं लगा पा रहे हैं। हमने छालीवुड के जाने माने निर्माताओं से बात की है.आइए जानते है क्या कहते हैं निर्माता।

पहले थियेटर बने - संतोष जैन

छत्तीसगढ़ फ़िल्म प्रोड्यूसर एसोसिएशन के अध्यक्ष फ़िल्म निर्माता संतोष जैन का कहना है कि फ़िल्म सिटी का हम विरोध नही करते हैं पर हमारी पहली प्राथमिकता थियेटर है। प्रदेश भर में ज्यादा से ज्यादा मिनी थियेटर और टूरिंग टाकीज बने और सरकार उन्हें सब्सिडी दें। इससे छालीवुड बहूत आगे जाएगा। थियेटर की कमी के चलते छत्तीसगढ़ के दर्शक हमारी मूवी नही देख पाते। सरकार को इस दिशा में विचार करना चाहिए।  फिल्मसिटी का हम स्वागत करते हैं पर हमारी पहली प्राथमिकता थियेटर ही होगी। सीधी सी बात है मिनी थियेटर और टूरिंग टॉकीज होगी तो गांवों के दर्शकों को बड़े शहर नही आना पड़ेगा और आसानी से फ़िल्म देखने को मिलेगा। बहुत ऐसे भी लोग होते है जो शहर जाते ही नही और मनोरंजन के शौकीन होते हैं। ऐसे लोगो के लिए मिनी थियेटर या टूरिंग टाकीज चाहिए।

फिल्मसिटी की क्या जरूरत- मनोज वर्मा
छत्तीसगढ़ी फिल्मों के जाने माने निर्माता निर्देशक एवं प्रोड्यूसर एसोसिएशन के सचिव मनोज वर्मा का दो टूक शब्दों में कहना है कि यहाँ फ़िल्म सिटी की जरूरत ही नही है। क्यों चाहिए और किसे चाहिए फ़िल्म सिटी। छत्तीसगढ़ में शूटिंग के लिए सब कुछ है। सुंदर सुंदर लोकेशन है, नदी है, झरना है, पहाड़ है, जंगल है, गांव है, मंदिरें है, सब कुछ तो है फिर फ़िल्म सिटी की क्या जरूरत। कौन जाएगा वहां शूटिंग करने। नेचुरल चीजें है उसे हम दिखातें हैं फिल्मों में, जिसे देखकर दूर दूर से पर्यटक छत्तीसगढ़ आते हैं। हमें तो बस मिनी थियेटर चाहिए ब्लाक स्तर पर। सारी समस्याएं थियेटर बना देने से खत्म हो जाएगी। यहां फिल्मसिटी बनेगी बाहर के लोग आएंगे दुकान लगाएंगे। छोटे छोटे सेट लगाकर शूट करेंगे। हमारे किसी काम के नही। ना तो यहां वेब्सिरिज बनता है, ना सीरियल बनता है तो फिर फिल्मसिटी किसलिए। नही चाहिए फिल्मसिटी। हमारी मांग है थियेटर बस।

फिल्मसिटी से क्या होगा - अशोक तिवारी
छत्तीसगढ़ी फिल्मों के निर्माता अशोक तिवारी भी फ़िल्म सिटी बनाने के सरकार के फैसले से सहमत नही है। उनका कहना है कि फिल्मसिटी के बन जाने से क्या होगा। ना निर्माताओं को फायदा है और ना ही कलाकारों का। फिर फिल्मसिटी क्यों। आज हम मनपसंद लोकेशन पर मुफ्त में फिल्मों की शूटिंग कर लेते है। फिल्मसिटी बन जाने से हमारा खर्च बढ़ जाएगा। शूटिंग के लिए वहां पैसा देना होगा। ये तो बाद की बात है। सबसे पहली बात है कि वहां शूटिंग के लिए जाएगा कौन। छत्तीसगढ़ में इतने सुंदर सुंदर लोकेशन है जैसा चाहे हमे मिलता है। छालीवुड की हितैषी है तो सरकार विकास खंडों में थियेटर बनाये सब्सिडी दे और टूरिंग टॉकीजों को लाइसेंस दे बस । फिर देखो छत्तीसगढ़ी फ़िल्म कैसे दौड़ती है।

फिल्मसिटी ही चाहिए, स्वागतेय निर्णय-मोहन सुंदरानी
छालीवुड के भीष्मपितामह मोहन सुंदरानी ने कहा है कि हमे तो फिल्मसिटी ही चाहिए। सरकार का निर्णय स्वागतेय है। 20 सालों में किसी ने भी फ़िल्म ओर संस्कृति की ओर ध्यान नही दिया। मैं आभारी हूँ भूपेश बघेल का जिन्होंने हमारी सुध तो ली और फिल्मसिटी बनाने का निर्णय लिया। बहुत फायदा है इससे। फ़िल्म निर्माताओं को सारा लोकेशन एक ही स्थान पर मिलेगा। आज यहां वहां भटकना पड़ता है। रही बात थियेटर की तो क्यों चाहिए। जितनी थियेटर अभी है उसी में निर्माता फ़िल्म नही लगा पाते। मैं छालीवुड के निर्माताओं से पूछना चाहता हूं कि क्या सभी सेंटरों पर फ़िल्म लगाते हैं। नही ना,तो फिर ओर थियेटर क्यों चाहिए। सरकार का कदम सही है हमें फिल्मसिटी ही चाहिए।

फिल्मसिटी आज की जरूरत है- अमरनाथ पाठक
अभिषेक मूवी के संचालक फ़िल्म निर्माता अमरनाथ पाठक का कहना है कि फिल्मसिटी आज की जरूरत है। थियेटर की जरूरत नही है जितने थियेटर है हम उसी का उपयोग नही कर पाते है तो फिर और क्यों चाहिए। फिल्मसिटी बनाने से निर्माताओं को शूटिंग में सहूलियत होगी। जो चशिये वो एक ही स्थान पर उपलब्ध होगी। यहां वहां शिफ्ट नही होना पड़ेगा। यही समय की मांग है। धन और समय दोनों की बचत होगी।


फिल्मसिटी का विरोध नही पर औचित्य भी नही- अलक राय
फ़िल्म निर्माता एवं डिस्ट्रीव्यूटर अलक राय का कहना है कि मैं फिल्मसिटी का विरोध नही कर रहा हूँ पर यहां फिल्मसिटी का कोई औचित्य नही है। पूरा छत्तीसगढ़ अपने आप मे एक फ़िल्म सिटी है। हमे तो थियेटर चाहिए इससे रिकवरी होगी। जहां हमारे दर्शक है वहां थियेटर नही है। थियेटर वहां है जहां दर्शक नही है। सिमगा, में नही है, गरियाबंद में नही है ,चौकी में नही है, डोंगरगांव में नही है। यहां थियेटर चाहिए। छत्तीसगढ़ में कोई लोकेशन की कमी तो है नही की फिल्मसिटी बनाएं। शासन अपने गार्डन तक का तो मेंटनेंस नही कर पाती। फिल्मसिटी क्या मेंटेन करेंगे।

सरकार मरीजों का मर्ज तो जाने- प्रकाश अवस्थी
फ़िल्म निर्माता निर्देशक एवं अभिनेता प्रकाश अवस्थी का कहना है कि सरकार मरीजों का मर्ज जाने बिना कैसे फिल्मसिटी का ऐलान कर दिया।सरकार पहले थियेटर खोलने सब्सिडी दे। सरकार तो थियेटर खोलेगी नही, तो गांवों के बेरोजगार युवकों को थियेटर खोलने सब्सिडी दे ताकि जो फ़िल्म देखना चाहते हैं उसे साधन मिल जाए। जुआ ओर शराब ही इंटरटेनमेंट का साधन ना हो फ़िल्म भी गांवों तक पहुंचे। फिल्मसिटी हमारी कोई जरूरत नही है बल्कि यहां सुंदर सुंदर गार्डन है उसे शूटिंग के लिए फ्री कर दें। फिल्मसिटी पर 500 करोड़ खर्च करोगे। 100 करोड़ में तो  दो ढाई सौ थियेटर खुल जाएंगे।

थियेटर हो तो सारी समस्या खत्म - डॉ अजय सहाय
छालीवुड के जाने माने अभिनेता, निर्माता निर्देशक डॉ अजय मोहन सहाय का कहना है कि हमारी सबसे बड़ी सज़्मस्या थियेटर है।सरकार इस दिशा में कदम उठाए। थियेटर होगा तो छत्तीसगढ़ी फिल्मों को लोग देख सकेंगे। गांव के दर्शक फ़िल्म देखने गांव से शहर नही आते। उन्हें उनके नजदीक तक हमारी फिल्म ले जानी होगी यानी कस्बों में थियेटर बने। फ़िल्म सिटी का यहां कोई काम नही है। जो सरकार के पास साधन है उसे शूटिंग के लिए फ्री कर दें। मुक्तांगन में शूटिंग करनी है तो हमे पैसा देना होता है। फिल्मसिटी बन जायेगा तो वहां भी पैसा वसूला जाएगा। अभी हमारे निर्माता जहां चाहे वह मनमर्जी से शूटिंग कर लेते हैं।

मंगलवार, 14 जनवरी 2020

“आ जा नदिया के पार” ज्ञानेश तिवारी का ड्रीम प्रोजेक्ट

एक्शन से भरपूर रोमांटिक एवं पारिवारिक फिल्म  
अरुण बंछोर छॉलीवुड स्टारडम 

श्रीराम मोशन पिक्चर्स के बेनर तले बनी निर्माता निर्देशक ज्ञानेश तिवारी की फिल्म “आ जा नदिया के पार” उनकी ड्रीम प्रोजेक्ट है. इस फिल्म में उन्होंने दर्शकों की पसंद का विशेष ख्याल रखा है और वो सब कुछ देने की कोशिश की है जो छत्तीसगढ़ की जनता फिल्मों में देखना चाहती हैं. ये फिल्म श्री तिवारी की दिशा और दशा दोनों तय करेगी. “आ जा नदिया के पार” एक ऐसी फिल्म है जिसमे आपको रोमांस भी मिलेगा तो एक्शन ,मारधाड़ ,सन्देश , शानदार लोकेशन भी देखने को मिलेगा. इस फिल्म की कहानी पारिवारिक है जो मौजूदा हालातों को प्रदर्शित करती है. कहानी क्या है ये हम अभी नहीं बताएँगे इसके लिए आपको टाकीजों तक जाना होगा. पर यह जरुर है कि फिल्म देखकर आपको कहीं भी निराशा नहीं होगी. ज्ञानेश तिवारी का निर्देशन में बेहतर अनुभव है., फिल्म के नायक अशरफ अली है और नायिका आस्था दयाल दोनों के अभिनय में माहिर हैं और कम समय में इस फिल्म इंडस्ट्री में अपनी अच्छी पहचान बनाई है. दोनों की फिल्मे टाकीजों में पहले भी अच्छा प्रदर्शन कर चुकी है. अशरफ ने प्रेम के बंधना और ले चल नदिया के पार में तो आस्था ने तहूँ कुंवारा महूँ कुंवारी में लोगो का दिल जीता है. विनायक अग्रवाल एक मझे हुए बेहतरीन कलाकार हैं, सरला सेन का अभिनय हमेशा लोगो को पसंद आया है इस फिल्म में भी सरला ने अपना अच्छा अभिनय देने की कोशिश की है. अन्य कलाकार है मंदिरा नायक, दूजे निषाद, विनोद. टाईटल गीत खुद निर्माता ज्ञानेश तिवारी ने लिखे हैं तो संगीत दिया है अभिनव तिवारी ने. अभिनव और चम्पा निषाद के स्वर से गाने सजे हैं. फिल्म में चार गाने हैं जो दर्शकों को पसंद आयेगा, ऐसी उम्मीद है.

प्रतिस्पर्धा की होड़ में छालीवुड

प्रतिस्पर्धा छालीवुड के लिए ठीक नहीं – मोहन सुन्दरानी 
हर माह आये एक फिल्म, तो ही अछा – संजय बत्रा 
- रोहित बंछोर
छत्तीसगढ़ फिल्म इंडस्ट्री 20 साल के सफ़र में आज भी ठीक से स्थापित नहीं हो पाए हैं इसका कारण जो भी हो लेकिन फिल्मों की होड़ से यह इंडस्ट्री आगे जाने के बजाय पीछे ही जायेगी. फिल्मे बनना अच्छी बात है इससे कलाकारों को रोजगार तो मिलता है लेकिन फिल्मे ज्यादा व्यवसाय नहीं कर पाती जिससे सीधे सीधे निर्माताओं को ही नुकसान होता है. छत्तीसगढ़ की जनता हर सप्ताह एक फिल्म देखने की स्थिति में नहीं है, हाँ माह में एक फिल्म जरुर देख सकते हैं. फरवरी माह में सात छः फिल्मे रिलीज हो रही है. 7 फरवरी को आ जा नदिया के पार, दईहान और बेनाम बादशाह फिल्म. 14 फरवरी को तैं मोर लव स्टोरी, 21 फरवरी को जय भोले मया मा डोले और 28 फरवरी को तोर मोर यारी. अब दर्शक क्या एक हप्ते में ये छः फिल्मे देखा पायेंगे, प्रतिस्पर्धा का क्या नतीजा होगा, क्या इस तरह एक साथ कई फिल्मे रिलीज होनी चाहिए, आईये जानते हैं हमारे निर्माता निर्देशक क्या कहतें हैं?
प्रतिस्पर्धा ठीक नहीं – मोहन सुन्दरानी
छालीवुड के भीष्मपितामह मोहन सुन्दरानी का इस क्षेत्र में अछा खासा लंबा अनुभव है. वे कहतें हैं कि इस तरह की प्रतिस्पर्धा ठीक नहीं है. आज तो कुछ भी फिल्मे बन रही है. फिउल्मे अच्छी बने तभी छत्तीसगढ़ के दर्शक फिल्म देखेंगे. हामरे दर्शक इतने अमीर नहीं है कि हर सप्ताह एक फिल्म देखें, अछा होगा कि माह में एक या दो फिल्मे ही रिलीज हो. अन्यथा निर्माता को सीधे सीधे नुकसान होगा. कलाकारों को तो उनकी मेहनत का फल पहले ही मिल जाता है. अब फरवरी में ६ फिल्मे आ रही है ये दर्शकों पर बोझ की तरह है किसे देखे किसे नहीं. अगर प्रतिस्पर्धा होती रही तो इस फिल्म इंडस्ट्री को बह्गुत ही नुकसान होगा.
हर हप्ते एक फिल्म ठीक नहीं – संजय बत्रा 
छालीवुड के लिजेंड एक्टर जो बालीवुड में भी धूम मचा रहे हैं का कहना है कि हर हप्ते एक फिल्म का रिलीज होना कतई ठीक नहीं है. माह में एक फिल्म आये तो दर्शक देख पायेंगे. छत्तीसगढ़ में ऐसा दर्शक नहीं है जो अपना कामधाम छोइदकर हर हप्ते फिल्म देखने जाएँ. प्रतिस्पर्धा कतई ठीक नहीं है यहाँ मनोरंजन का मामला है कोइ व्यवसाय नहीं. हाँ एक बात और फिल्म साल में भले ही दो चार बने लेकिन अच्छी कहानी पर ही बने , गुणवत्ता भी ठीक हो वरना छालीवुड का भगवान् ही मालिक होगा. आज तो हालात ये है कि किसी भी विषय पर कुछ भी फिल्मे बन रही है जिससे छालीवुड आगे जाने की बजाय पीछे ही जा रहा है.
ऐसी प्रतिस्पर्धा के ही ख़िलाफ़ हूँ  - नीरज श्रीवास्तव
इतनी अधिक संख्या में छत्तीसगढ़ी फिल्मों का निर्माण होना वाकई में सुखद एहसास कराता है , इसमें कोई दोराय नहीं है ।परंतु एक निर्माता फ़िल्म का भला निर्माण करता क्यों है ? सीधी सी बात है क्यूँकि अधिक से अधिक संख्या में दर्शकों का प्यार उस फ़िल्म को प्राप्त हो सके । मगर इन दिनों हमारी छोलीवुड इंडस्ट्री में एक ही महीने में छह फ़िल्मों को रिलीज़ करने का लेटेस्ट फ़ार्मूला पेश किया जा रहा है । मेरी मानें तो यह नया एक्सपेरिमेंट दर्शकों के साथ - साथ निर्माता - निर्देशकों के लिए भी निश्चित ही हानिकारक है । बतौर निर्देशक में तो कभी भी नहीं चाहूँगा कि मेरी फ़िल्में उस महीने सिनेमाघरों में आये जिस महीने छह और अलग -अलग फ़िल्में प्रदर्शित होने को तैयार हैं । सच कहूँ तो मैं ऐसी प्रतिस्पर्धा के ही ख़िलाफ़ हूँ । मेरा मानना है कि हमें मिलकर इस छोलीवुड इंडस्ट्री को और आगे बढ़ाने एवं सशक्त बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए ना की फल फूल रहे इस उद्योग को डुबाने में अपना समय लगाना चाहिए। रिलीजिंग में कोई भी कॉम्पिटिशन नहीं होना चाहिए।
प्रतिस्पर्धा अवश्य होना चाहिए-अलीम बंशी 
फिल्में चलाने हेतु कुछ महीने ही उपयुक्त होते हैं जिसमें अधिक व्यवसाय की उम्मीद निर्माता करता वह किसी को बोल तो सकता नहीं कि आप मत लगाओ मैं अपनी फिल्म लगा लगाऊंगा अब अगर फिल्म बनाया है निश्चित रूप से उसे व्यवसाय करना है और वह मार्केट पर आएगी ही चाहे संख्या जो भी हो.प्रतिस्पर्धा अवश्य होना चाहिए प्रतिस्पर्धा होने से हम अपनी कमियों को समझ पाएंगे निश्चित रूप से वह दिन आएगा जब हम दर्शकों की चॉइस को पहचान पाएंगे हमें दर्शक को क्या देना है छोटी इंडस्ट्रीज तो टॉलीवुड भी थी पर निर्माण अच्छा किया जाना शुरु किया गया दर्शकों की नब्ज पहचान ली गई तो वह बॉलीवुड को भी पीछे छोड़ता है. रहा प्रश्न नतीजे का हम धीरे-धीरे अब मेकिंग की ओर खुद ही बढ़ रहे हैं हम खुद ही फैसला कर रहे हैं कि दर्शकों को क्या देना है जब तक हम धोखा नहीं खाएंगे तब तक सीख नहीं पाएंगे मेकिंग मेकिंग होती है उसके लिए अनुभव की आवश्यकता होती है अनुभव से कई निर्माता और कंपनियां कार्य कर रही है कुछ का रिजल्ट बहुत अच्छा आता है कुछ कुछ सामान्य होता है यदि हम छत्तीसगढ़ी फिल्म की बात करें तो हमारे पास संस्कृति ही मुख्य संस्कृति के गीत संगीत कथा को साथ ले चलें तरक्की संभव है हमें इस बात को ध्यान रखना होगा कैमरा पकड़ लेने से आर्टिस खड़े हो जाने से फिल्म नहीं बन जाती अनुभव जरूरी है वरना डुब्बत में आते रहेंगे
पूरी इंडस्ट्री को उठाना पड़ेगा नुकसान - अम्न हुसैन
 हमारी इंडस्ट्री छोटी है दर्शक कम है एक-एक सप्ताह में फिल्म लगेगी तो दर्शक बार-बार टॉकीज तक फिल्म देखने नहीं आएंगे अगर ऐसा होता है तो चंद खराब फिल्मों के साथ एक अच्छी फिल्म भी पीस जाएगी दर्शक उसे भी नहीं देखने आएंगे और इसका नुकसान कुल मिलाकर पूरी इंडस्ट्री को उठाना पड़ेगा।
प्रतिस्पर्धा स्वस्थ  होनी चाहिए- डॉ अजय सहाय 
फिल्म हर हप्ते नहीं लगना चाहिए ,क्यों देखेगा कोई ?  इंसान टाइम क्राइसिस के दौर से गुजर रहा है और भी काम हैँ जमाने मेँ ! प्रतिस्पर्धा तॊ प्रकृति के प्रादुर्भाव से ही रही है हर जगह , चाहें वो इन्सान हो या जीव जंतु । जहॉं  प्रतिस्पर्धा होती है वहाँ लक्ष्य पाने के लिए जोश भी बढ़ जाता है और एक से बढ़ कर एक सुखद परिणाम सामने आते है । डार्विन के अनुसार जो सबसे ज्यादा "फिट" हॊता है वही "सर्वाइव" करता है (survival of the fittest) बाकी सब विलुप्ति के कगार पर पहुंच जाते हैँ । सर्वाइव वही करेगा जो बतौर  चेलेंज काम करेगा । प्रतिस्पर्धा स्वस्थ  होनी चाहिए,  उसमें दुश्मनी या नफरत  की बू नहीँ आनी चाहिए । इतनी सारी फ़िल्में एक साथ रिलीज़ होने से कुछेक  अच्छी फ़िल्मेँ  ही चल पाएंगी ,  बाकी सब नुकसानदायी साबित होंगीं । आखिर करेँ भी तॊ क्या ?  निर्माताओं के पास कोई विकल्प भी तॊ नहीँ है । छत्तीसगढ़ी फ़िल्मों की बाढ़ सी आ गयी है । जिसे  देखो वो कलाकारों से  चंदा लेकर  व नाना प्रकार के जुगाड़ लगाकर फ़िल्में बना रहा है ।  अनगिनत फिल्में बनी पड़ी हैँ । निर्माताओं पर निवेशकों व कलाकारों का दबाव है । उन्हें लगाना मजबूरी सी है ..।
ज़मीनी हकीकत भी समझना होगा- रजनीश 
वैसे फरवरी माह में स्वयं मेरी ही 3 फिल्म्स आ रही है, पर अलग अलग डेट में, यथा 7 फरवरी को दईहान 14 फरवरी को तए मोर लव स्टोरी(नाम बदल के) 21 फरवरी को जय भोले मया मा डोले, इसी माह बेनाम बादशाह और ले चल नदिया के पार के भी रिलीज होने की जानकारी मिली है,इस तरह 5 फिल्म्स की जानकारी है मेरे पास,,,,हालाकि ज़मीनी हकीकत भी समझना होगा रिलीज की तैयारियोँ को ले के,,,,घोषणाएं तो होती रहती हैं और समय से बदल भी जाती है,,,,ये सब परिदृश्य जनसँख्या विस्फोट की तरह दिखता है मुझे,,,,ये व्यापार है,,,जो जिद के उन्माद में साक्षात हो रहा, छोटी सी हमारी दुनिया है परिस्थितनुसार उसके हिस्से बाँट कर क्रमवार सब चलेंगे तो  कुछ संभावना है सफलता की,,,पर एक ही शहर के अलग-अलग सिनेमा में एक ही डेट में अलग-अलग छत्तिसगडी फिल्म लगती है तो दर्शक फिल्म चयनित कर देखने के मोड में आ जाता है, और निर्माता की कमाई बट जाएगी,,,,यहाँ प्रतिस्पर्धा का जन्म होगा,,,जो बेहतर फिल्म ले के आयेगा वो एडवांटेज में रहेगा ।
राज साहू की अपील – ना लगाएं फिल्म 
फिल्म जोहार छत्तीसगढ़ के निर्माता राज साहू का कहना हैं कि इस तरह फिल्म रिलीज करने से निर्माताओं को अच्छा खासा नुकसान होगा और दर्शकों को भी मनोराब्न्जन नहीं मिल पायेगा. उन्होंने फिल्म निर्माताओं से अपील की है कि 31 जनवरी को जोहार छत्तीसगढ़ रिलीज हो रही है जिसे अभी से लोगों का आशीर्वाद मिल रहा है ऐसी स्थिति में फरवरी में फ़िल्में रिलीज ना करें ताकि छत्तीसगढ़ी फिल्म जोहार छत्तीसगढ़ को अपार सफलता मिल सके. कम समय में लगातार फिल्मो के रिलीज होने से फिल्मों को ही नुकसान होगा.
बिलकुल भी रिलीज नहीं होनी चाहिए – अलक
फिल्म निर्माण से फिल्म वितरण के क्षेत्र ने झंडा गाड़ने वाले अलक राय कहतें हैं कि बिलकुल भी लगातार फिल्मे रिलीज नहीं होनी चाहिए. अपनी फिल्म इंडस्ट्री बहुत ही छोटी है यहाँ लोगो को मिलजुलकर फिल्म के हित में काम करना चाहिए. ताकि फिल्मों का भविष्य सुनहरा रहे और एक निर्माता जो बड़ी मेहनत से पैसा लगाकर फिल्म बनाता है उसकी रिकवरी के भी चांसेस होना चाहिए.
लगातार फिल्मे देखना संभव नहीं – अरविंद मिश्र 
शिक्षाविद, साहित्यकार, समाजसेवा में जुटे अफसर अरविंद मिश्र का कहना है कि लगातार छत्तीसगढ़ी फिल्मे देखना हमारे दर्शकों के लिए संभव ही नहीं है. इसलिए बहुत ही सोच समझकर फिल्मे रिलीज किया जाना चाहिए. प्रतिस्पर्धा अच्छी बात है लेकिन स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए. स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो तो फिल्मों की गुणवत्ता बढेगी. एक साथ कई फिल्मे यी हर हप्ते एक फिल्मे रिलीज नहीं होनी चाहिए इससे निर्माताओं का ही नुकसान है. 

शनिवार, 4 जनवरी 2020

दर्शकों को भायेगी “ जोहार छत्तीसगढ़”

स्टार कास्ट संदेशात्मक फिल्म
-       अरुण बंछोर / श्रीमती केशर सोनकर,

छत्तीसगढ़ी फिल्म जोहार छत्तीसगढ़ दर्शकों को कितना भायेगी, यह 31 जनवरी को पता चलेगा लेकिन इस फिल्म से निर्माता निर्देशक ,कलाकार और दर्शकों सभी को बहुत ही उम्मीद है. इसके दो पहलु है- पहला फिल्म स्टार कलाल्कारों से सजी हुई है और दुसरा इस फिल्म की कहानी में दम है. ऐसी कहानी पर छत्तीसगढ़ में अब तक कोइ फिल्म ही नहीं बनी है. कहानी तो हम नही बताएँगे लेकिन सार यह है कि बाहरी लोगो द्वारा स्थानीय लोगो पर राज करने और शोषण करने की कहानी है जिसे बड़ी ही खूबसूरती से फिल्माया गया है.इस फिल्म में सभी कलाकारों ने बड़ी मेहनत की है. स्टार कास्ट में पहला नाम आता है शिखा चिताम्बरे का जिन्होंने छालीवुड में एकक्षत्र राज किया है. नायक है देवेन्द्र जांगडे जिनके नाम बेस्ट डेव्यु एक्टर का अवार्ड है. पुष्पेन्द्र सिंह बेस्ट डायरेक्टर के साथ साथ जाने माने अभिनेता हैं. उपासना वैष्णव एक ऐसी अभिनेत्री है जो छालीवूड की ममात्रामायी माँ है. जिनके अभिनय के आसपास कोइ नहीं है. अनिल शर्मा छालीवूड के एकमात्र लिजेंड एक्टर है. फिल्म रोमियो राजा के सेट पर  फिल्म जोहार छत्तीसगढ़ के कई कलाकारों से हमारी मुलाक़ात हुई तो हमने फिल्म के बारे में चर्चा छेड़ी.
मैंने फिल्म को सब कुछ दिया है – राज साहू

जोहार छत्तीसगढ़ फिल्म के निर्माता और एक्टर राज साहू का कहना है कि इस फिल्म से मुझे बहुत ही उम्मीद है क्योकि मैंने इस फिल्म को सब कुछ दिया है. पूरी मेहनत के साथ जिस चीज की भी जरूरत हुई मैंने दिया है. फिल्म के निर्माण में अच्छाई के लिए मैंने कोइ समझौता नहीं किया है. फिल्म को इस तरह से फिल्माया गया है कि वास्तविकता लगता है. सभी कलाकारों ने बहुत मेहनत किया है जिसके चलते फिल्म अच्छी बनी है. फिर कहानी का विषय एकदम नया है इसलिए मुझे इस फिल्म से बहुत ही उम्मीद है.
हमने फिल्म को अच्छी बनाने की कोशिश की है – देवेन्द्र
जोहार छत्तीसगढ़ फिल्म के नायक और निर्देशक देवेन्द्र जांगडे का कहना है कि हमने इस फिल्म को बेहतर बनाने के लिए कोइ कसर नहीं छोडी है. एक एक वस्तुओं और कास्ट्यूम पर विशेष ध्यान दिया है. तमाम स्टार कलाकार इस फिल्म में अपना योगदान दिए हैं. लक्ष्मण यादव जैसे डीओपी है. पहली बार हम नई कहानी लेकर आये हैं इसलिए उम्मीद है जनता की नजरों में हम खरा उतरेंगे. शानदार गीत है, संगीत है, एक्शन , रोमांस, फाईटिंग सब कुछ है. निर्देशन में भी मैंने बहुत ही बारीकियों का ध्यान रखा है. जो फिल्म को बेहतर बनाता है.
एक बेहतरीन फिल्म है – अनिल शर्मा
फिल्म जोहार छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री का किरदार निभा रहे विलेन अनिल शर्मा का कहना है कि यह फिल्म एक बेहतरीन फिल्म साबित होगी क्योकि इस फिल्म में किसी भी बात के लिए निर्माता और डायरेक्टर ने समझौता नहीं किया है , जो जरूरत है उसे पूरा किया है, शानदार लोकेशन , मुख्यमंत्री का काफिला, कास्ट्यूम सब कुछ वास्तविकता लगता है. सबसे अच्छी बात है पूरी फिल्म का फिल्मांकन बेहतरीन है इसलिए फिल्म बेहतरीन है.
कहानी में दम है – क्रांति दीक्षित
छालीवूड के बेहतरीन खलनायक क्रांति दीक्षित का कहना है कि इस फिल्म की कहानी में दम है. नई कहानी है जो हर किसी राज्य की वास्तविकता से परिपूर्ण है. बाहरी लोग आकर स्थानीय लोगो पर कैसे राज करते है, कैसे शोषण करते है और उसका कैसे प्रतिकार होता है यह फिल्म में बताया गया है. इसे हम राज्य की ज्वलंत मुद्दा भी कह सकते है. जिसे खूबसूरत ढंग से फिल्माया गया है. इस मुद्दे पर आज तक छालीवूड में कोइ फिल्म नहीं बनी है. इसलिए हमें बहुत उम्मीद है कि दर्शक इसे जरुर पसंद करेंगे.